1954 की गणतंत्र दिवस परेड में कुमांउनी संस्कृति की झांकी जब प्रस्तुत की गई तो कुमाऊं की पहाड़ियों में कुछ ही लोगों के पास रेडियो थे। टेलीविजन का तो जमाना ही नहीं था। उस समय अल्मोड़ा नगर अपने बौद्धि...
आज की मालतराई तो अत्यंत संकुचित 25-30 कि.मी. नीचे तक के क्षेत्र में थी जिसमें बदायूं-बरेली के ऊपर वाला सारा उत्तरी भाग आता था।
आज की तोलछा, मारछा और जाड आदि शौका विरादरियों कत्यूरियों की बहुत करीबीं रही है। जबकि कत्यूरियों की अपनी जातीय पहचान 'खशियों' में बची हुई है। Identity of Katyuri or Nag | Uttarakhand Hi...
पिथौरागढ़ के अस्कोट क्षेत्र में पाल वंश के रजवारों की शासन की ऐतिहासिक परम्परा सन् 1947 ई. तक इस क्षेत्र में विद्यमान थी। इसी परिपेक्ष में इनके पूर्ववर्ती कत्यूरी शासकों का उल्लेख ई.टी. अटीकंसन रा...
अंग्रेजों के द्वारा पहला बंदोबस्त सन् 1815-16 के मध्य ई.गार्डनर की अध्यक्षता में किया गया। यह बंदोबस्त गोरखा बंदोबस्त के ही आँकड़ो पर आधारित था। इस बंदोबस्त में राजस्व की धनराशि पचासी हजार एक सौ इ...
खान नामान्त स्थान आश्चर्य जनक रूप से गढ़वाल में एक भी नहीं और कुमाऊँ में एक दर्जन से भी अधिक ऐसे स्थान नाम आज भी हैं जिनके अन्त में खान शब्द लगा मिलता है जैसे चीनाखान, शफाखान, धनियाखान
कुमाऊँ लोकगाथा साहित्य में रुहेले - जब रुहेलों सरदार ने अपने फौजदारों से कुमांऊं सेना से हार जाने का कारण पूछा तो उत्तर मिला कि हुजूर! कुमाऊँनी होते तो तीन हाथ के हैं पर चार हाथ की तलवार लेकर साम...
उत्तराखण्ड के उत्तर मध्य कालीन इतिहास में तराई क्षेत्र में रुहेलों के उत्थान और वहां से कुमाऊँ राज्य पर हुए आक्रमणों के बारे में गजेटियरों तथा कुमाऊँ के इतिहास पर लिखी पुस्तकों में कुछ पृष्ठों के...
स्कन्दपुराण के अनुसार मान्यता है कि कुमाऊँ में एक टीले के ऊपर भगवान विष्णु ने कछुए या कूर्म का अवतार धारण किया था। चन्द राजाओं का राज्य पहले इसी काली कुमाऊँ में रहा। अल्मोड़ा का नाम पहले बारहमण्डल...
सबसे बाद में आने वाले और बसने वाले रुहेले पठान तो उत्तराखण्ड वालों के लिए आतंकवादी साबित हुए थे। यह प्रारम्भ में लोदी वंश शासन काल में अंगरक्षक, महलरक्षक आदि पदों पर भी रहे थे।
रुहेलों के कुमाऊँ अभियान में आए ऐतिहासिक स्थान नाम - यहां पर विस्तार से संक्षेप में उल्लेख किया जा रहा है- तारीखे मुबारक शाही के अनुसार इकवाल नामक विद्रोही सरदार ने कटेहर में राय हरसिंह को सर्मथन...
ब्रिटिश कमिश्नरी में कमिश्नर सबसे शक्तिशाली प्रशासनिक अधिकारी था। ब्रिटिश कमिश्नरी में प्रशासन में वरिष्ठ सहायक कमिश्नर बाद में डिप्टी कमिश्नर बन गये। वह पूरे जिले का इन्चार्ज था, और इसका मुख्याल...
जिस तरह मध्यकाल में पिथौरागढ़ जनपद की भूमि में सोर में बमसीरा में मल्ल, अस्कोट में पाल और गंगोली में मणिकोटी नामक छोटे राज्य थे, उसी तरह चम्पावत जनपद में भी 'राजबुंगा' और 'बाणासुर&...
उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि
21 मार्च 2022 को श्री पुष्कर सिंह धामी जी को सर्वसम्...
शहीद श्री देव सुमन का टिहरी रियासत के बमुण्ड पट्टी क...
उत्तराखंड के लोकगायक एवं उत्तराखंड के गांधी के नाम स...
शेखर जोशी जी का जन्म अल्मोड़ा के ओलिया गांव, तहसील सो...
उत्तराखंड से आकर बॉलीवुड की सिनेमा नगरी में अपनी अवा...
बछेन्द्री पाल माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम भारती...
ब्रिटिश कमिश्नरी में कमिश्नर सबसे शक्तिशाली प्रशासनि...
बिच्छू घास दुनिया के अधिकतर देशों में पाये जाने वाली...
पवेंद्र सिंह कार्की का नाम उत्तराखंड के महान लोकगायक...
अनुराधा निराला जी तब से उत्तराखंड की सुरीली आवाज से ...
परमपराओं के अनुसार गांव के पंचायत भूमि पर ही इस मेले...
राधाखंडी शैली, सदैई, बाजूबन्द, गायन जागर की विलक्षण ...
Kailash Sharma Uttarakhand Politician | Biography | ...
उत्तराखंड के अल्मोड़ा ज़िले के खूँट नामक पर्वतीय गाँव ...
चम्पावत जनपद मुख्यालय से 60 किमी. की दूरी पर स्थित द...
गेंडी या गैड़ी खगोती लोकोत्सव गढ़वाल मंडल के पौड़ी ज...
In the east of Kumaun, 35 km away from the beautiful...
यह गढ़वाली लोक गीत स्वयं में अनूठा कलेवर धारण किये हु...
Chholiya is one of the popular folk dance of Uttarak...
सबसे बाद में आने वाले और बसने वाले रुहेले पठान तो उत...