सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां, फुलन छै के बुरूंश ! जंगल जस जलि जां। सुमित्रानंदन पन्त जी की अपनी दुदबोली कुमाऊंनी में एक मात्र कविता है। Buransh- Sumitranandan Pant | Poem ...
उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि
देवी भगवती मैया कोटगाड़ी की देवी मैया देवी भगवती मैय...
सुन ले दगडिया बात सूड़ी जा बात सूड़ी जा तू मेरी, हिरदी...
जल कैसे भरूं जमुना गहरी ठाड़ी भरूं राजा राम जी देखे। ...
शिव के मन माहि बसे काशी आधी काशी में बामन बनिया, आधी...
सिद्धि को दाता विघ्न विनाशन होली खेले गिरजापति नन्द...
हाँ हाँ हाँ मोहन गिरधारी। हाँ हाँ हाँ ऐसो अनाड़ी चुनर...
हरि धरे मुकुट खेले होली, सिर धरे मुकुट खेले होली-2, ...
गोरी गंगा भागरथी को क्या भलो रेवाड़, खोल दे माता खोल ...
हे रामधनी आंख्यु म छे तेरी माया रामधनी हिया म छे लाज...
कैले बांधी चीर, हो रघुनन्दन राजा। कैले बांधी गणपति ब...
आज हिमाल तुमन के धत्यूंछौ, जागौ-जागौ हो म्यरा लाल, न...
घुघुती बासुती, माम कां छ माल कोटी।, कि लालो, दुदु भा...
सोचि ल्यूछा त सोच पड़नी, कौ भे मी, का बटी ऐ रूडीनिक ज...
हे मेरे प्रदेश के वासी, छा जाती वसन्त जाने से जब सर्...
भोलिया की हार, छातुला की धार, काणा कमस्यार, पड़नी तुस...
कुछ कुछ गांव सा बाकी है अभी मेरे शहर में, कुछ कुछ पह...
जहरूवा को मौनो हरूवे नैं जौंनो कस च्योल भौ रे उ मकैं...
प्यारे समुद्र मैदान जिन्हें नित रहे उन्हें वही प्यार...
ब्रज मण्डल देश दिखाओ रसिया तेरे ब्रज में गाय बहुत है...