अपनी बहन कुँवरी की स्मृति में जिसका 1937 मे निधन हो गया था
बहिन! स्वर्ग मे हो तुम क्या मेरी बातो को
सुन पाती हो? उठ वसंत के इन प्रांतो में
मैं करता हूँ आंसूं भर कर याद तुम्हारी!
बुला लिए है अपने पास उमा औ पारी
दोनों मैंने, पर इन दोनों मे कोई भी-
वैसी नही बहिन! बचपन मैं जैसी तुम थी!
मुझे याद आती है उन बीते वर्षो की,
बचपन की, बचपन के चंचल हर्षों की,
सेबों के डालो पर चढ़ कर उन्हें झुकाना,
और ललाई भरे सेब पुलकित हो खाना
कभी खुबानी के डालों को हिला हिला कर
छाया को पीली खुबानियों से देना भर!
शीत पूष में, नभ में थे बादल घिर आते,
चलती तीक्षण हवा थी, व्यर्थ पवन में बहते
बर्फीली तूफ़ान हिमालय के उर से थे!
जम जाती थी बर्फ टोपियों पर, पावों के
तलवे के निशाँ पर, हिम के कुटी बनाते
फिरते रहते थे बाहर ही गाते गाते!
और दुसरे दिन जब धूप निकल आती थी
तब वह पीली धुप हमें कित्तनी भाती थी!