सुरंगतटी रसखानमही धनकोशभरी यहु नाम रहयो। पद तीन बनाय रच्यौ बहु विस्तार वेगु नहीं जात कहयो। इन तीन पदों के बखान बस्यों अक्षर एक ही एक लहयो। धनराज सुदर्शन शाहपुरी टिहिरी यदि कारन नाम गहयो।
गुमानी जी की यह कविता उन्होने अपने गांव गंगोलीहाट के...
छोटे पे पोशाक बड़े पे ना धोती ना टोपी है, कहै गुमानी ...
हटो फिरंगी हटो यहाँ से छोड़ो भारत की ममता हटो फिरंगी ...
उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि
देवी भगवती मैया कोटगाड़ी की देवी मैया देवी भगवती मैय...
सुन ले दगडिया बात सूड़ी जा बात सूड़ी जा तू मेरी, हिरदी...
जल कैसे भरूं जमुना गहरी ठाड़ी भरूं राजा राम जी देखे। ...
शिव के मन माहि बसे काशी आधी काशी में बामन बनिया, आधी...
हाँ हाँ हाँ मोहन गिरधारी। हाँ हाँ हाँ ऐसो अनाड़ी चुनर...
सिद्धि को दाता विघ्न विनाशन होली खेले गिरजापति नन्द...
गोरी गंगा भागरथी को क्या भलो रेवाड़, खोल दे माता खोल ...
हरि धरे मुकुट खेले होली, सिर धरे मुकुट खेले होली-2, ...
हे रामधनी आंख्यु म छे तेरी माया रामधनी हिया म छे लाज...
कैले बांधी चीर, हो रघुनन्दन राजा। कैले बांधी गणपति ब...
मैंने न कभी देखा तुमको पर प्राण तुम्हारी वह छाया जो ...
Keishe Kah Doon In Saalon Men | कैसे कह दूँ, इन सालो...
Deharaadoon Vaalaa Hoon | देहरादून वाला हूँ | Narend...
देवी का थान पतरिया नाचे, ताथैय्या ताथैय्या होय, अम्ब...
नानि-भौ भुखै डाड़ मारी वे हो हीरू घर ऐजा वै, घाम ओछै...
दाज्यू, कूंछी के नि हुन हर बात पै कूंछी के नि हुन। क...
प्यारा, भज भक्तन के हितकारी सिरी कृष्ण मुरारी हाँ हा...
सीता राम को ब्याह जनकपुर जाना है ।। कै लख आये रे हस्...
प्यारे समुद्र मैदान जिन्हें नित रहे उन्हें वही प्यार...