मुझे प्रेम की अमर पूरी में अब रहने दो!
अपना सब कुछ देकर कुछ आँसू लेने दो!
प्रेम की पूरी, जहा रुदन में अमृत झरता,
जहा सुधा का स्रोत उपेक्षित सिसकी भरता!
जहा देवता रहते लालायित मरने को;
मुझे प्रेम की अमर पूरी में अब रहने दो!
मधुर स्वरों में मुझे नाम प्रिय का जपने दो!
मधुरितु की ज्वाला में जी भर कर तपने दो!
मुझे डूबने दो यमुना में प्रिय नयनो की!
मुझको बहने दो गंगा में प्रिय वचनों की!
मुझे रूप की कुंजो में जी भर फिरने दो!
मधुर स्वरों में मुझे नाम प्रिय का जपने दो!
अलके बिखराए, आँसू में नयन डुबोये,
पृथ्वी की अपने तन-मन की याद भुलाए,
मै गाऊंगा विपुल पथो पर,शुन्य वनों में,
नदियों की लहरों में, कुंजो की पवनों में,
दुखी देवता-सा ऊपर को द्रृष्टि उठाए,
अलके बिखराए, आँसू में नयन डुबोये!
कहा मिलेगी मर कर इतनी सुन्दर काया,
जिस पर विधि ने है जग का सौन्दर्य लुटाया,
हरे खेत ये, बहती विजन वनों की नदिया,
पुष्पों में फिरती भिखारिनी ये मधुकरिया!
मेरे उर से उमड़ रही गीतों की धारा
बनकर ज्ञान बिखरता है यह जीवन सारा
किन्तु कहा वह प्रिय मुख जिसके आगे जाकर
मैं रोऊ अपना दुःख चटक सा मंडराकर
किसके प्राण भरू मैं इन गीतों के द्वारा
मेरे उर से उमड़ रही गीतों की धारा
मेरे कांटे मिल न सकेगे क्या कुसुमो से?
मेरी आहे मिल न सकेगी हरित द्रमो से?
मिल न सकेगे क्या शुचि दीपो से तम मेरा?
मेरी रजनी का ही होगा क्या न सबेरा?
मिथ्या होगे स्वप्न सभी क्या इन नयनो के?
मेरे कांटे मिल न सकेगे क्या कुसुमो से?
कहा मिलेगी मर कर इतनी शीतल काया?
कहा मिलेगी मर कर इतनी सुन्दर काया?
नदी चली जायेगी, यह न कभी ठहरेगी!
उड़ जायेगी शोभा, रोके ये न रुकेगी!
झर जायेगे फूल, हरे पल्लव जीवन के,
पद जायेगे पीट एक दिन शीत मरण से!
रो-रो कर भी फिर न हरी यह शोभा होगी!
नदी चली जायेगी, यह न कभी ठहरेगी!
मेरी बाहें सरितो सी आकुल होकर,
दिशा-दिशा में खोज रही है वह प्रिय सागर,
जिसे ह्रदय पर घर कर मिलती शांति चिरंतन,
जिस की छवि में खो जाता युग-युग को जीवन,
जिसे देख कुछ न दीखता फिर पृथ्वी पर,
मेरी बाहें खोज रही है वह प्रिय सागर,
मेरे पथ में हँसी किसी की फूल बिछाती,
याद किसी की मुझ को शुचि करने को आती,
उठता जब तूफान, गगन में मेघ गरजते,
अंधकार के चिन्ह न पथ के मुझ को मिलते,
मूर्ति किसी की तब हँस-हँस कर आगे आती,
मेरे पथ में हंसी किसी की फूल बिछाती;
तुम प्रकाश हो, मुझ में दुःख का तिमिर भरा है,
तुम मधु की शोभा हो, मुझमे कुछ न हरा है,
तुम आशा की वाणी, मैं निराश जीवन ह,
तुम हो छठा हँसी की, मैं नीरव रोदन हु,
तुम सुख हो, मेरे दुःख का सागर गहरा है,
मुझे मिलो हे, तुममे मधुर प्रकाश भरा है,
मैं चुपचाप सुना करता हु ध्वनि आशा की,
पीता हूँ शोभा अपनी ही अभिलाषा की!
देखा करता हूँ चुपचाप तटों पर आती,
उन लहरों को, जो सहसा हँस कर फिर आती!
मुझे चाह है सजल प्रेम की मृदु भाषा की,
मैं चुप चाप सुना करता हूँ ध्वनि आशा की!
नाम तुम्हारा ले-ले कर आहे भरता हूँ,
मैं पृथ्वी पर सजल नयन लेकर फिरता हूँ,
खोया सा बैठा रहता नदियों के तट पर,
सुनता लहरों के स्वर, तरु विपिनो के मर्मर,
राहों में पथिको के दल देखा करता हूँ,
नाम तुम्हारा ले-ले कर आहें भरता हूँ!
यौवन के पथ पर जाकर ऐसे ही मन को-
लुटा ओर आँखों में लेकर के रोदन को,
जो सुख होता धोखा खा कर पछताने में,
जो सुख होता फिर-फिर कर धोखा खाने में,
अमर वही सुख तो करता नश्वर जीवन को,
यौवन के पथ जा कर ऐसे ही मन को-
प्रेम देव हे! हे बसंत के कोमल सहचर!
सुधा पिलाने वाले हे देवता मनोहर!
किया न तुम ने जिस को पीड़ित निज वाणों से,
व्यर्थ हुआ उसका जीवन ही इस पृथ्वी पर,
प्रेम देव हे! हे बसंत के कोमल सहचर!