मैंने न कभी देखा तुमको,
पर प्राण तुम्हारी वह छाया-
जो रहती है मेरे उर में
वह सुन्दर है पावन सुन्दर!
मैंने न सुना कहते तुमको
पर मेरे पूजा करने पर
जो वाणी-सुधा बरसाती है
वह सुन्दर है पावन सुन्दर!
मैं उस स्पर्श को क्या जणू
पर मेरी गीली पलकों पर
जो मृदुल हथेली फिरती है
वह सुन्दर है पावन सुन्दर!
मैंने न कभी देखा तुमको
पर प्राण तुम्हारी वह छाया-
जो रहती है मेरे उर में
वह सुन्दर है पावन सुन्दर!