प्यारे समुद्र मैदान जिन्हें
नित रहे उन्हें वही प्यारे
मुझ को हिम से भरे हुए
अपने पहाड़ ही प्यारे हैं
पांवों पर बहती है नदिया
करती सुतीक्ष्ण गर्जन ध्वनियां
माथे के ऊपर चमक रहे
नभ के चमकीले तारे हैं
आते जब प्रिय मधु ऋतु के दिन
गलने लगता सब और तुहिन
उज्ज्वल आशा से भर आते
तब क्रशतन झरने सारे हैं
छहों में होता है कुंजन
शाखाओ में मधुरिम गुंजन
आँखों में आगे वनश्री के
खुलते पट न्यारे न्यारे हैं
छोटे छोटे खेत और
आडू -सेबों के बागीचे
देवदार-वन जो नभ तक
अपना छवि जाल पसारे हैं
मुझको तो हिम से भरे हुए
अपने पहाड़ ही प्यारे हैं