दाज्यू, कूंछी
के नि हुन
हर बात पै कूंछी
के नि हुन।
कुछ लोग आई रमट ली बेर,
काट ली गई, द्वि-चार पेड़,
तुमूल कौ, द्वि चारै तो छन,
के नि हुन।
पड़ोस वाल जोशी ज्यू, न्है गई
हमेशा लिजी गौं बटी।
तुमूल कौ, एकै परिवार तो गो,
के नि हुन।
ठेकेदार खनन कर गो,
तुमरि जीवनदाई नदी बटी,
तुमूल कौ थोड़ी तो छू।
के नि हुन।
के नि हुन, के नि हुन
यो देखौ दाज्यू, सब कुछ तो है गो।
ढान, जंगल राख है गई।
गों घर सुनसान है गई।
अब और के हुं बांकि
सब कुछ तो है गो
अब के हुं
शिकायत ली बेर
बखत अब तुमूथैं कून लागि रौ
कि, के नि हुन
अब के नि हुन
- वैभव जोशी