वहां हिमालय में,
जहां एक से रहते थे मौसमों के अंदाज
बदलते नहीं थे जहां लिबास बर्फानी
जाड़े, गर्मी, बहार और सावन
गूंजते थे बस ठण्डी हवाओं के सन्नाटें
कुछ सालों से मगर
उदास पड़ने लगी है सफेद रौनक वहां की
बर्फ भी पचती नहीं, निकाल फेंकता है
सिलेटी पड़ने लगा है बदन अब
कालापन दिखने लगा है आंखो तले
- वैभव जोशी।