ब्रिटिश काल में पर्वतीय क्षेत्रों के दुर्गम होने के कारण प्रारम्भिक 105 वर्षों तक कुली बेगार प्रथा विद्यामान रही। प्रशासनिक अफसरों द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों की जनता का शोषण किया जाता था। गौर्दा की कविताओं में कुली बेगार का मार्मिक चित्रण मिलता है। गौर्दा की विनती में कुली उतार का चित्र प्रस्तुत करते वे कहते हैं।
साण कुल्यूॅंणों, पाकिया खेती, छोड़ी जाॅंछि धरण किसान,
ह्यू पडिया में, द्यो का तहाड़ा, उसमें जाॅंछि कुली कुलान।
मुर्दा फुकड़ो, काजन छीड़ि, पडावन में हूंछी हैरान,
कुली बेगार दीने-दीने, चुलि में छी बाल निशान।
फिरि लै पीहन स्वाय पड़ॅछी, पकड़ी जाॅंछी तुमरा कान।