कुली बेगार आन्दोजन में गौर्दा का बहुत जुड़ाव था क्योंकि वे शोषित जनता के दर्द से दुःखी थे। इसी कारण अपनी कविताओं से इस कुप्रथा पर प्रहार का मौका वे नहीं चूकते।
जै जै बागनाथ तेरी, जै जै गड़ माई।
तेरा दरबार। यो खोरा भार।
कुली को उतार दियो कलंक वगाई।
सभा एक करि। सॅंकि गंगा धरि।
चाहे जूंला मरी कयो कुल्ली निद्यू भाई।