Folk Songs


    यात्रा

    ध्वनियों से अक्षर ले आना- क्या कहने हैं।
    अक्षर से ध्वनियाँ तक जाना क्या कहने हैं।
    कोलाहल को गीत बनाना- क्या कहने हैं।
    गीतों से कुहराम मचाना- क्या कहने हैं।
    कोयल तो पंचम में गाती ही है लेकिन
    तेरा-मेरा ये बतियाना- क्या कहने हैं।
    बिना कहे भी सब, जाहिर हो जाता है पर
    कहने पर भी कुछ रह जाना- क्या कहने हैं
    अभी अनकहा, बहुत-बहुत कुछ है हम सब में।
    इसी तड़फ को और बढ़ाया- क्या कहने हैं।
    प्यार, पीर, सघर्षों से भाषा बनती है
    ये मेरा तुझको समझाना- क्या कहने हैं।
    इसी बहाने चलो, नमन कर लें, उन सबको
    ‘अ’, से ‘ज्ञ’ तक सब लिख जाना- क्या कहने हैं।
    ध्वनियों से अक्षर ले आना- क्या कहने हैं।
    अक्षर से ध्वनियों तक जाना- क्या कहने हैं।


    गिरीश चंद्र तिवारी "गिर्दा" का जीवन परिचय


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