ध्वनियों से अक्षर ले आना- क्या कहने हैं।
अक्षर से ध्वनियाँ तक जाना क्या कहने हैं।
कोलाहल को गीत बनाना- क्या कहने हैं।
गीतों से कुहराम मचाना- क्या कहने हैं।
कोयल तो पंचम में गाती ही है लेकिन
तेरा-मेरा ये बतियाना- क्या कहने हैं।
बिना कहे भी सब, जाहिर हो जाता है पर
कहने पर भी कुछ रह जाना- क्या कहने हैं
अभी अनकहा, बहुत-बहुत कुछ है हम सब में।
इसी तड़फ को और बढ़ाया- क्या कहने हैं।
प्यार, पीर, सघर्षों से भाषा बनती है
ये मेरा तुझको समझाना- क्या कहने हैं।
इसी बहाने चलो, नमन कर लें, उन सबको
‘अ’, से ‘ज्ञ’ तक सब लिख जाना- क्या कहने हैं।
ध्वनियों से अक्षर ले आना- क्या कहने हैं।
अक्षर से ध्वनियों तक जाना- क्या कहने हैं।
गिरीश चंद्र तिवारी "गिर्दा" का जीवन परिचय