Folk Songs


    काफल पाक्कू - चंद्र कुँवर बर्त्वाल

    हे मेरे प्रदेश के वासी
    छा जाती वसन्त जाने से जब सर्वत्र उदासी
    झरते झर-झर कुसुम तभी, धरती बनती विधवा सी
    गंध-अंध अलि होकर म्लान, गाते प्रिय समाधि पर गान
    एक अंधेरी रात, बरसते थे जब मेघ गरजते
    जाग उठा था मैं शय्या पर दुःख से रोते-रोते
    करता निज जननी का चिन्तन,
    निज मातृभूमि का प्रेम-स्मरण
    उसी समय तम के भीतर से मेरे उर के भीतर
    आकर लगा गूंजने धीरे एक मधुर परिचित स्वर
    काफल पाक्कू, काफल पाक्कू
    काफल पाक्कू, काफल पाक्कू

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