एक और गौरा ( चिपको वूमेन ’’ गौरा देवी’’)
एक औरत थी वो,
हिम्मत उस की
पहाड़ो सी अडिग थी।
वो लड़ गयी लेकिन हिम्मत नहीं हारी।
न भय हुआ उसे बन्दूकों का
न मर्दों की अकड़ रोक पायी उसे।
वो जानती थी,
जंगल है तो जीवन है
वो अपने जैसी ही औरतों के साथ
चिपक गयी पेड़ों से,
उसके साहस की जीत हुई।
आज उधड़ते हुए जंगल
कटते हुए जंगल
आवाज लगाते है गौरा को।
शायद जरूरत है उन्हें
एक और गौरा की।
- वैभव जोशी।