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पवेंद्र सिंह कार्की (पप्पू कार्की) | |
जन्म: | जून 30, 1984 |
जन्म स्थान: | शैलावन गांव, पिथौरागढ़ |
पिता: | स्व० श्री कृष्ण सिंह कार्की |
माता: | श्रीमती कमला देवी |
पत्नी: | कविता कार्की |
बच्चे: | 1 (दक्ष) |
व्यवसाय: | कुमाउँनी लोक गायक |
मृत्यु: | जून 9, 2018 (34) |
पवेंद्र सिंह कार्की का नाम उत्तराखंड के युवा लोकगायकों में लिया जाता है, जिन्हें उत्तराखंड में पप्पू कार्की के नाम से लोकप्रियता मिली। इनके नाम न सिर्फ कई सुपरहिट गानें हैं बल्कि कई अवॉर्ड भी हैं जो इन्हें इनकी गायकी के लिए मिले हैं।
बचपन
पप्पू कार्की का जन्म पिथौरागढ़ के शैलावन गांव में 30 जून 1984 को हुआ था। इनके पिता का नाम स्व० कृष्ण सिंह कार्की था और माता का नाम श्रीमती कमला देवी है। पप्पू का स्कूली शिक्षा—दीक्षा पिथौरागढ़ में ही हुई है। उन्होंने अपनी स्नातक तक की पढ़ाई थल व बेरीनाग से की। उनकी पत्नी का नाम कविता कार्की हैं। उनका एक बेटा है जिसका नाम दक्ष है। दक्ष भी अपने पिता की तरह संगीत में दिलचस्पी रखता है। अभी पप्पू अपने पूरे परिवार के साथ हल्द्वानी में रहते हैं।
करियर
बचपन से ही संगीत के प्रति अपार रुचि रखने वाले पप्पू कार्की को अपने गुरु श्री कृष्ण सिंह कार्की का मार्गदर्श्न प्राप्त हुआ और वहीं से उनके मन में संगीत को अपना करियर बनाने की बात आई। उन्होंने अपने सफर की शुरुआत रामा कैसेट के साथ की जिसकी रिकॉर्डिंग दिल्ली में हुई, जिसमे उन्होंने न्योली गायी थी। 1989 में अपने करियर की शुरुआत करने वाले पप्पू कार्की का शुरुआती जीवन बहुत कठिनाई भरा रहा, उन्होंने 6 साल दिल्ली में और कई जगह नौकरी करी और साथ-साथ संगीत के क्षेत्र में भी जुड़े रहे। 2010 में उनकी एल्बम "झम्म लागदी" आई जो बहुत हिट हुई और फिर उनके पास एक से बढ़कर एक मौके आते रहे। वह इन दिनों अपनी एक एलबम की तैयारी कर रहे हैं जिसकी शूटिंग वह जल्द ही धारच्यूला में करने वाले हैं।
सम्मान
पप्पू कार्की ने 2006 में दिल्ली में आयोजित उत्तराखंड आइडल में भाग लिया और वहां पर उन्होंने अपनी गायकी से लोगों को भाव—विभोर कर दिया। इसी का असर था कि उत्तराखंड आइडल में उन्हें दूसरा स्थान प्राप्त हुआ। उसके बाद 2009 में मसूरी में आयोजित एक अवॉर्ड समारोह में उन्हें सर्वश्रेष्ठ नवोदित लोकगायक का भी अवॉर्ड मिला। 2014 में पप्पू को बेस्ट सिंगर के लिए यूका अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इसी सिलसिले में उन्हें 2015 में मुंबई में गोपाल बाबू गोस्वामी अवॉर्ड भी मिला।
उत्तराखंड के युवाओं के लिए सन्देश
पप्पू कार्की चाहते हैं कि उत्तराखंड के युवा अपने जीवन में आगे बढ़ें और संगीत में आधुनिकता लाएं। उनका मानना है कि बदलाव से ही विकास होता है इसलिए पुरानी सभ्यता को आगे लेते हुए नई चीजों के प्रति भी अपनी दिलचस्पी बढ़ाए।
दुःखद
देश-विदेश में उत्तराखंड की संस्कृति को पहचान दिलाने वाले हम सब के प्यारे हम सब की शान पप्पू दा का देहांत 9 जून, 2018 हैड़ाखान रोड, हल्द्वानी के पास कार एक्सीडेंट में हो गया। ओखल कांडा गनियारी में चल रहे युवा महोत्सव से लौटते वक्त प्रातः 5 बजे हेड़ाखान के पास वाहन अनियंत्रित हो जाने ये हादसा हुआ।
प्रसिद्ध गीत
● ऐ जा रे चैत बैशाखा मेरो मुनस्यारा
● डीडीहाट की छमना छोरी
● सिलगड़ी का पाला चाला
● बिर्थी खौला पानी बग्यो सारारा
● पहाड़ो ठंडो पांणी
● मधुली, रूपै की रसिया
● तेरी रंगीली पिछौड़ी
● छम-छम बाजलि हो
● उत्तराणी कौतिक लगिरो
● होठों में मुरली, कमर में छ रुमाल
● देवी भगवती मैय्या
● सुन ले दगड़िया
● आग्ये मोहनी बन ठन बे
● तवे में मेरी माया मोहनी
● काजल क टिक्क लगा ले
● बसंती छोयड़ी
● लाली हो लाली होसिया
● साली मार्छाली
● चम्पावत की रश्मी बाना
● माल देसे की छोरी तनु
● चौकटे की पार्वती
● हीरा समदड़ी
● नीलू छोरी
● ऐजा ऐजा तू मेरी पराना
● चाँचरी (हिट मधु उत्तरायणी कौतिक जुल)
● भैसी लड़ी हो माया
● तेरी मेरी माया सुवा रौली अमर
● गिरगौ बटी पूजगे छू
● काम की न काज की
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