मैती आंदोलन पर्यावरण से जुड़ा आंदोलन है। पर्यावरण के प्रति भावनात्मक लगाव ही इस आंदोलन का सफल होना रहा है। इस अनूठे आन्दोलन की मुहिम श्री कल्याण सिंह रावत जी ने शुरू की। जो कि जीव विज्ञान के एक प्राध्यापक है। चमोली के ग्वालदम क्षेत्र से इस आंदोलन की शुरूआत उन्होने 1996 में की।
मैती शब्द का अर्थ उत्तराखण्ड में मायका होता है। इस आंदोलन में शादी के समय वर-वधू एक पौधे का रोपण करते है। बेटी के ससुराल जाने के बाद उसके माता-पिता इस पौधे को बेटी की तरह मानकर इसकी देखभाल करते है। आज लाखों खर्च करके भी और कई अवसरों पर पौधा रोपण कार्यक्रम कराये तो जाते है लेकिन उन्हे रोपित करने के बाद उनका ख्याल नहीं रखा जाता। जबकि पेड़ पौधों को भी उचित देखभाल की आवश्यकता है तभी जाकर वे फलते है। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य सिर्फ पौधा लगाना नहीं है अपितु उसकी देखभाल करना भी है। यह आंदोलन अब गढ़वाल से कुमाउँ और फिर धीरे धीरे अन्य राज्यों के साथ साथ विदेशों में भी अपनाया जा चुका है। कनाडा की पूर्व प्रधानमंत्री फ्लोरा डोनाल्ड इस आंदोलन की खबर पढ़कर इतनी प्रभावित हुई कि वे कल्याण जी से गोचर तक मिलने आई थी।
मैती आंदोलन अब शादी की एक रस्म बन चुका हैं। बकायदा अब लोग इसे शादी के निमंत्रण कार्ड में मैती कार्यक्रम के रूप में छपवाते है। इसमें गांव की लड़कियां मिलकर एक मैती संगठन बनाती है। सभी लड़किया आपस में मिलकर फिर संचालन हेतु एक अघ्यक्षा नियुक्त करती है, जिसे ‘दीदी’ कहा जाता है। बाकि सदस्यों को मैती बहन के नाम से संबोधित किया जाता है। विदाई के समय मैती बहनें वर वधू को एक निश्चित स्थान में ले जाकर पंडित द्वारा वैदिक मंत्रोचार के बाद पौधें का रोपण किया जाता है। उसके बाद वर मैती बहनों को इच्छा अनुसार पैसा देता है । इन पैसों को मैती बहनें एक खाते में जमा करती है, जिसका उपयोग गरीब बच्चों की पढ़ाई जैसे अच्छे कामों में किया जाता है।
कल्याण सिंह रावत जी को इस आंदोलन की प्रेरणा चिपको आंदोलन से मिली। नेपाल में भी इसी तरह का एक आंदोलन हुआ है। उन्होने वहां से भी इसकी प्रेरणा ली। स्कूल और कॉलेज के दिनों में उन्होने पर्यावरण से जुडे कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया हुआ है। कल्याण जी ने पहले जहां प्रवक्ता थे वहीं से इस आंदोलन के लिये बच्चों को फिर गांव के अन्य लोगों को प्रेरित करना शुरू कर दिया। लोगों को उनका ये विचार पंसद आने लगा, आस पास जब भी किसी लड़की की शादी होती तो विदाई से पहले वे पति के साथ एक पौधा रोपित करती। रावत जी का इस आंदोलन के पीछे यहीं उद्देश्य था कि पर्यावरण का संरक्षण किया जाये। जो आज सफल भी हो रहा है।
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