रंवाई या तिलाड़ी आंदोलन आंदोलन स्वतंत्रता से पूर्व का आंदोलन था। रंवाई घाटी का यह आंदोलन तिलाड़ी आंदोलन (वर्तमान में टिहरी जिले के बड़कोट तहसील में आता है) के नाम से भी जाना जाता है। जलियावाला बाग की भांति ही रंवाई आंदोलन में भी अपने हक के लिये लड़ रहे आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसाई गई थी।
टिहरी राज्य में स्वतंत्रता से पूर्व राजा नरेन्द्रशाह का राज था। 1927-28 के समय में टिहरी रियासत में जो वन कानून बनाया जा रहा था, उस वन अधिनियम के अन्तर्गत ग्रामीणों के हितों को सिरे से अनदेखा किया गया। ग्रामीणों के आवागमन के रास्ते, उनके खेत, पशुओं को चराने के जंगल आदि सभी वन कानून के अन्तर्गत कर दिये गये। जिस कारण वहां की जनता में भारी रोष फैल गया। उस समय पहाड़ी क्षेत्र कृषि पर ही निर्भर था। लोग अपनी खेती बाड़ी पर निर्भर थे। इस वन कानून के खिलाफ रंवाई के सभी किसान एकजुट हुये। उन्होने आजाद पंचायत की घोषणा कर रियासत के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया था। आस पास के सभी लोग अपनी मांग को लेकर तिलाड़ी मैदान में एकजुट हो गये।
आंदोलनक के बीच 30 मई 1930 को रियासत के दीवान चक्रधर जुयाल के आदेष पर राज्य सेना ने सभी आन्दोलनकारियों पर गोली चला दी जिससे वहां मौजूद सैकड़ो किसान शहीद हो गये और कई घायल भी। मरे हुये लोगो को सेना द्वारा यमुना नदी में फैंकवा दिया गया। तिलाड़ी मैदान में आज भी 30 मई को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह पूरा प्रकरण रंवाई कांड और तिलाड़ी नाम से जाना जाता हैं
रँवाई जन संघर्ष के कारण
राजा नरेन्द्रशाह ने राजशाही पर आसीन होने के बाद पूर्व रराजाओं की तरह अपने नाम पर एक नया नगर बसाने की सोची, जिसके लिए ओडाथली नामक स्थान को चुना तथा यहाँ पर नई राजधानी और नये महल का निर्माण कार्य शुरू हो गया जिसमें अकेले महल के निर्माण में ही तीस लाख से भी ज्यादा रूपये खर्च होने का अनुमान था। उस पर राजा लगातार यूरोप यात्रा पर भी खर्च किया करते थे, इन सभी खर्चों की भरपाई हेतु राजा ने नया जंगलात नियम लागू कर आरक्षित वनों की सीमा बढ़ाई, चरान-चुगान का शुल्क बढ़ाया। गाँव वालों से बरा-बेगार अत्याधिक रूप में लिया जाने लगा। इसके अलावा जंगल में शिकार करने पर मनाई, नदियों में मछली मारना (माँण का त्यौहार) भी बन्द कर दिया गया; एक भसै से ज़्यादा होने पर दो रूपया प्रति भंसै वार्षिक पुच्छीकर, भोजन बनाने के लिए चुल्हे पर प्रति दो रुपया चूलकर, आलू की उपज पर प्रति मन एक रुपया आदि अनेकों करों को जनता पर जबरदस्ती लाद दिया। इसके अलावा एक अति महत्वपूर्ण घटना ने रँवाई की जनता में आक्रोश की भावना को भड़काया। राजा नरेन्द्रशाह, नई राजधानी में गवर्नर हेली अस्पताल की नींव रखने आये। इस आयोजन में जगह-जगह से लोग आये, जिसमें अपने मनोरंजन के लिए राज दरबार की तरफ से गरीब जनता को नंगे होकर तालाब में कूदने को कहा गया। जिससे जनता के मन में विद्रोह की आग जलने लगी। अनन्तः ग्रामीण जनता अपनी मूलभूत आवश्यकताओं व कठिनाइयों के लिए स्वयं संघर्ष करने के लिए आगे बढ़ी।
इस संघर्ष का नेतृत्व हीरा सिंह, बैजराम, दयाराम, रूद्र सिंह आदि नेताओं ने किया। रँवाई की जनता ने आजाद पंचायत की स्थापना की। रँवाई की जन जागृति देखकर रियासत के कर्मचारी वहाँ से भाग गये और रँवाई की जनता ने वहाँ अपनी समांतर सरकार की स्थापना कर डाली।
रँवाई जन संघर्ष के दौरान दो हिंसक घटनायें घटीं जिसमें पहली राॅड़ी घाटी गोली काण्ड 20 मई सन् 1930 को हुआ तथा दूसरा तिलाड़ी काण्ड 30 मई सन् 1930 को घटित हुआ। जिसमें राॅड़ी घाटी गोली काण्ड के घटनाक्रम के अन्तर्गत रँवाई जनसंघर्ष के कुछ नेताओं को वार्ता हेतु बुलाकर गिरफ्तार किया गया। नेताओं की गिरफ्तारी की बात सुन जनता ने पुलिस से अपने नेताओं को छोड़ने के लिए राॅड़ी घाटी में घेराव किया जिस पर डी.एफ.ओ. ने जनता पर गोली चलायी जिसमे अजीत सिंह व झुण्या (जूना) सिंह की तत्काल ही मृत्यु हो गयी। जनता द्वारा मना करने पर डी.एफ.ओ. ने दोनाली बन्दूक तान दी जिसे किशन दत्त ने रोका अगर वो यह न करते तो न जाने कितने मासूम ग्रामीणों को अपनी जान गँवानी पड़ती। उसके बाद डी.एफ.ओ. पदमदत्त रतूड़ी नरेन्द्रनगर भाग गया। जनता ने अपने नेताओं को छुड़ा लिया। राॅड़ी काण्ड से ग्रामीणों को विश्वास हो गया था कि दरबार में उनके लिए गोली, डंडा आरै कैद के अलावा आरै कोई न्याय नहीं है। अतः ग्रामीणों ने 30 मई 1930 के दिन यमुना के तट पर स्थित तिलाड़ी के मैदान में आज़ाद पंचायत की बैठक का आयोजन किया। इसी बीच जब बैठक चल रही थी तभी अचानक सेना ने बिना किसी चेतावनी के मैदान को घेर अंधाधुंध गोलियाँ बरसानी शुरू कर दी। सैकड़ों लोग मारे गये, कुछ जान बचाने को यमुना नदी में कूदे, आरै बह गये। कुछ पेड़ों पर चढ़े तो सेना ने उन्हें वहीं पर मार दिया। बाद में सेना ने गाँववालों को लूटा और लोगों को कैंप में लाकर मार डाला व लाशें नदी में बहा दी।
रँवाई काण्ड के समय राजा यूरोप गये हुये थे उनके लौटने पर जनता ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की माँग की किन्तु राजा ने रँवाई गोलीकाण्ड के दोषी दीवान को दण्ड न देकर उसके कार्य की प्रशंसा की और रँवाई काण्ड में पकड़े ग्रामीणों जिसकी संख्या लगभग 68 थी के खिलाफ मुकदमा चलवाया व उन्हें सजा दी। रँवाई आन्दोलन ने नवयवु को प्रभावित किया साथ ही साथ जो प्रजा दरबार की ओर विश्वास व आस्था रखे हुये थी। रँवाई के नरसंहार ने उन्हें विशेष रूप से प्रभावित किया।
रँवाई काण्ड की आलोचना रियासत व ब्रिटिश भारत दोनों स्थानों में हुई। तत्कालीन समाचार पत्रों ने इस काण्ड से जन मानस को अवगत कराया जिसका प्रभाव टिहरी रियासत की प्रजा व युवकों पर अत्याधिक पड़ा। परन्तु दूसरी तरफ टिहरी रियासत के राजा ने रँवाई के आन्दोलन को ढंडक (नाटक) और उसके आन्दोलनकारियों को सोंगण (सिरफिरा) की संज्ञा देकर तिरस्कृत किया। रँवाई आन्दोलन सर्वांगींण सुधार चाहने वाला एक बहुआयामी आन्दोलन था। जनता अपनी वन संपदा और जल संपदा पर अपना स्वामित्व चाहती थी। इस प्रकार रँवाई जन संघर्ष ने जनता के संघर्षों में एक अविस्मरणीय अध्याय को जोड़ा। जिससे पे्ररित हो समय-समय पर जनता ने अपने अधिकारों के लिये संघर्ष के मार्ग को अपनाया।
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