रामदत्त जोशी- पंचांग कर्ता (1884-1962): गाँव बिठौरिया, तहसील हल्द्वानी, नैनीताल। पैतृक निवासः शिलौटी (भीमताल), नैनीताल। संस्कृत साहित्य (वैदिक वाङमय), गणित एवं फलित ज्योतिष के आधिकारिक विद्वान। कूर्मान्चल में मान्य गणेश मार्तण्ड पंचांग के रचियता और सम्पादक। धर्मोपदेशक, ज्योतिर्भूषण, महोपदेशक उपाधियों से विभूषित। ज्योतिष ग्रन्थों के लेखक।
रामदत्त जोशी जोशी जी की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। कुछ समय हल्द्वानी बेलेजली लौज में चलने वाले मिशन स्कूल में शिक्षा ग्रहण की, तदुपरान्त पीलीभीत स्थित ललित हरि संस्कृत विद्यालय में अध्ययनार्थ पहुचे। यहां अध्ययन काल में आप पं. द्वारिका प्रसाद चतुर्वेदी पं. सोमेश्वर दत्त शुक्ल के सम्पर्क में आए। ये विद्धान पुरुष सनातन धर्म के व्याख्याता और प्रचारक थे। आपका भी इस ओर रूझान बढ़ता चला गया। आपने अपने सम्पर्क पं. ज्वाला प्रसाद मिश्र, स्वामी हंस स्वरूप, पं. गोस्वामी गणेशदत्त, पं. दीनदयाल शर्मा से बढ़ाए। ये सभी विद्वान प्रखर वक्ता और सनातन धर्म महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता थे। इसी दौरान आप आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती, पं. गिरधर शर्मा तथा पं. अखिलानन्द शर्मा के सम्पर्क में आए और लाहौर, अमृतसर, अलवर, जयपुर सहित पंजाब और राजस्थान के कई छोटे-बड़े नगरों में सम्पन्न धर्म सम्मेलनों को सम्बोधित कर सनातन धर्म की पैरवी की। वि. सं. 1964 में भारत धर्म महामण्डल ने आपको 'धर्मोपदेशक' की उपाधि से विभूषित किया। सम्वत् 1973 और 1983 में इसी संस्था ने आपको 'ज्योतिर्भूषण' और 'महोपदेशक' की उपाधियों से विभूषित किया।
ज्योतिष के रामदत्त जोशी जी सिद्धहस्त लेखक थे। अपने जीवन काल में इन्होंने 7 पुस्तकों का प्रणयन किया था; यथा- ज्योतिष चमत्कार समीक्षा, महोपदेश चरितावली, नवग्रह समीक्षा, प्राचीन हिन्दू रसायन शास्त्र, समय दर्पण, ठन-ठन बाबू और पाखण्ड मत चपेटिए। कुछ काल के लिए अवरुद्ध अपनी कुल परम्परा में पंचांग गणना को स्थिर रखते हुए आपने फिर से वि. सं. 1963 में गणेश मार्तण्ड पंचांग बम्बई से प्रकाशित करवाया। आज भी इनकी पीढ़ी यह पंचांग सम्पादित कर रही है। कुमाऊँ केसरी श्री बद्रीदत्त पाण्डे जी को आपने 'कुमाऊँ का इतिहास' लिखने में विशेष सहयोग दिया था। पाण्डे जी ने इसका उल्लेख पुस्तक में किया है। संगीत तथा रामचरित मानस में आपकी विशेष रूचि थी। 1906 में आपने भीमताल में रामलीला कमेटी की स्थापना कर उसे मंचीय स्वरूप दिया। 1938 में हल्द्वानी में सनातन धर्म सभा की स्थापना की। इस कार्य में पं. भोलादत्त पाण्डे, वकील, पं. हीराबल्लभ पाण्डे वकील, पं. रामचन्द्र शर्मा, पं. देवीदत्त बेलवाल अरायजनवीस आपके सहयोगी बने। इन्हीं के सहयोग से यहां पर सनातन धर्म संस्कृत विद्यालय की स्थापना हुई। अपने जीवन में आप नियमित्तता, अनुशासन, स्वाध्याय और देवार्चन को बहुत अधिक महत्व देते थे। फलित ज्योतिष की घोषणाओं के कारण आपको तत्कालीन कई रजवाड़ों और वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों ने समय-समय पर सम्मानित किया। उल्लेखनीय है, घुड़सवारी में भी आप सिद्धहस्त थे। आपके पिता पं. हरिदत्त जोशी भी अपने समय के सफल ज्योतिर्विद, राजमान्य, प्रतिष्ठित एवं प्रतिभावान पुरुष थे।