पहाड़ी लोगो के लिये जंगल किसी वरदान से कम नहीं होता। ईंधन, भोजन,जल मवेशियों को चराना आदि कार्य जंगल के बिना पूरे नहीं हो सकते। यूं कह सकते है कि जंगल पहाड़ियों के लिये उनके दैनिक जीवन का हिस्सा होता है। उसी जंगल पर अगर सरकार तरह तरह के प्रतिबंध लगा दे तो अपने दैनिक हकों के लिये झपटो छीनों जैसे आंदोलन का सहारा लेना पड़ता है।
रैणी , लाता आदि गांवों के आस पास के वन क्षेत्र को सरकार ने वन अधिनियम के अन्तर्गत ला दिया। इस क्षेत्र को नंदा देवी नेशनल पार्क का नाम दे दिया गया। इस अधिनियम के अन्तर्गत वहां के स्थानीय आम जनता पर कई प्रकार के प्रतिबंध लग गये। जैसे कि जंगलों में जाना , मवेशियों को चराना, ईंधन के लिये समान आदि अब ग्रामीण जंगलों में यह नहीं कर सकते थे। चूंकि हिमालयी गांव होने के कारण वहां के ग्रामीण अपने जंगलों पर ही निर्भर थे। उन सब गांवों के लिये यह अधिनियम दुविधा का कारण बन चुका था।
सरकार ने जब ग्रामीणों की सभी दलीलों को दरकिनार कर दिया तो अपनी इन सभी समस्याओं से निजात पाने के लिये 21 जून, 1998 को गांव में ही धरना प्रारम्भ कर दिया। और अपनी हक के लिये अपने पालतू जानवरों के साथ नन्दा देवी राष्ट्रीय पार्क में घुस गये। इस आंदोलन को झपटो छीनों आंदोलन का नाम दिया गया।