इस फल से संबंधित एक प्रसिद्ध स्थानीय गीत की पंक्ति है - 'बेडू पाको बारा मासा नारैणा काफल पाको चैत मेरी छैला।' वैसे तो बारहों महिना किसी फल का पकना संभव नहीं है। जो भी हो, बेडू जून में पकता है। यह भी स्वत: उगने वाला जंगली वृक्ष का फल है। बेडू के फल पककर हल्के काले रंग के हो जाते हैं। इसका स्वाद मीठा होता है तथा इसके भीतर बारीक बीज होते हैं। पशु चराने वाले बच्चे इसे खूब खाते हैं, बेडू के फलों को मसलकर तथा नमक मिलाकर खाते है। किंतु वयस्कों द्वारा इसे कम पसंद किया जाता है। इसको अधिक खाने की मनाही होती थी। अधिक खाने से पेट की गड़बड़ी की संभावना बताकर बच्चों को डराया जाता था। गूलर भी इसी प्रजाति का वृक्ष है। जिसके फल कुछ बड़े होते हैं। इन वृक्षों की टहनियों और पत्तियों को पशुओं को चारे के रूप में खिलाते हैं।
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