शिवराम सकलानी (निधन: 1818): जन्म स्थानः सकलाना, टिहरी गढ़वाल। अपने समय के गढ़वाल की राजनीति के चाणक्य और इतिहास पुरुष। टिहरी रियासत के प्रभावशाली जागीरदार।
सन् 1643 के आसपास किसी समय ढौंढियाखेड़ा (अवध) से चलकर एक कान्यकुब्ज ब्राह्मण नागदेव जी अपने छह भाइयों-संसारदेव, महाराज, कीर्तिधर, घ्यालू, बलीराम और रामेश्वर दीवान के साथ गढ़वाल आए। उनके गढ़वाल आगमन का हेतु बद्रीनारायण की यात्रा या मुस्लिम शासकों के उत्पीड़न से पलायन- कुछ भी हो सकता है। गढ़वाल आकर वे ब्राह्मण बन्धु राजा के कृपापात्र हो गए। राजा ने प्रसन्न होकर उन्हें सकनियानी, सकन्याणी, सगुनिआना और अब सकलाना में रहने–बसने की आज्ञा प्रदान कर दी। कालान्तर में राजा प्रदीपशाह ने वह ताल्लुका उक्त ब्राह्मण भाइयों में से एक भाई बलीराम को ब्रह्महोत्र (ब्राह्मण को दिया गया दान) कहकर मुआफी (जागीर) के रूप में प्रदान कर दिया। तब ही से वे सकलानी और सकलाना के माफीदार कहे जाने लगे। उन्हीं भाइयों में से एक भाई रामेश्वर दीवान के उषापति, रामानन्द, शीशराम, शिवराम, नेत्रमणि, चित्रमणि, नित्यानंद, विजयराम और प्रीतमणि नौ पुत्र हुए। इनमें शीशराम और शिवराम दो भाई अत्यन्त प्रतिभावान, चतुर, साहसी, कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी थे। राजा सुदर्शनशाह ने गढ़वाल से गोरखाली शासन को उखाड़ फेंकने के लिए जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी से सहायता मांगी तो शिवराम सकलानी ने राजा पक्ष से गोरखालियों के विरुद्ध कम्पनी सेना का साथ दिया। कम्पनी सेना के कमाण्डर विलियम फ्रेजर और मेजर बालडौक से उनके बहुत अच्छे सम्बन्ध थे। युद्ध के दिनों शिवराम राजा सुदर्शन शाह के मुख्यार थे।
1815 में गढ़वाल राज्य का विभाजन हो जाने पर शिवराम सकलानी ने एक प्रार्थना-पत्र विलियम फ्रेजर को दिउरी, सकलाना, अठूर, पडियारगाँव, सुनारगाँव तथा देहरादून में बाजावाल गांव पर उनके परिवार के परम्परागत अधिकार (जागीर) को बहाल रखने बावत दिया। कम्पनी अधिकारियों पर शिवराम सकलानी के विशेष प्रभाव को देखकर और युद्ध में उनकी बहादुरी और स्वामी भक्ति से प्रसन्न होकर कम्पनी शासन ने 15 जून 1815 में एक रूबकारी (आदेश पत्र) के अनुसार 57 गाँवों की जागीर उन्हें बहाल कर दी। इसी वर्ष माघ माह में राजा सुदर्शन शाह ने भी उन्हें खास पट्टी में और छह गांवों की जागीर प्रदान कर दी। अपने जीवन काल में शिवराम सकलानी अपनी जागीर को एक स्वतंत्र रियासत के रूप में मान्यता दिलाए जाने के लिए काफी प्रयत्नशील रहे, किन्तु राजा की सलाह पर कम्पनी सरकार ने स्वीकृति प्रदान नहीं की। कुमाऊँ कमिश्नरी और टिहरी रियासत के लिए नियुक्त पौलेटीकल एजेन्ट मि. विलियम ट्रेल ने 17 जून 1817 के एक आदेश के अनुसार शिवराम सकलानी को मुआफी के अन्तर्गत
फौजदारी को छोड़कर दिवानी मुकदमों का निर्णय करने का अधिकार दे दिया। बाद के वर्षों में उनके उत्तराधिकारियों में जब जागीर सम्बन्धी विवाद बढ़े तो 31 दिसम्बर 1828 को गवर्नर- 'जनरल ने आदेश जारी किया कि जो मुकदमें रेगूलेशन 10,1817 के अनुसार निर्णित होते थे, भविष्य में उनका निर्णय दून का असिस्टेन्ट सुपरिन्टेन्डेंट करेगा। मुआफीदार को आन्तरिक पुलिस व्यवस्था तथा जमानत के योग्य मुकदमों के निर्णय करने का अधिकार होगा। इसके पश्चात मुआफीदार को मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के अधिकार दे दिए गए और उसे एक जागीरदार-सामंत मान लिया गया।
माफीदारों का मूल गांव पुजारगांव (सकलाना) है। यहीं ये लोग अपने कुलदेवता "सदाशिव" की पूजा करते हैं, जिस कारण ये 'पुजारी' भी कहे जाते हैं। इनका गांव पुजारियों का गांव- 'पुजारगांव' कहा जाता है। समीप ही जागीरदार साहब की कई कमरों वाली महलनुमा हवेली थी, जो आज 'हवेलीगांव' बन गया है और वह हवेली अवशेष के रूप में अपने गौरवशाली अतीत की कहानी कह रही है। यहीं जागीरदार साहब की कचेहरी लगती थी। अपराधियों के लिए एक हवालात भी बनी थी। कुछ का कहना है कि हवेली के पास ही एक 'फांसीघर' भी बना था। बाद के वर्षों में इनके वंशधरों के मध्य जायदाद सम्बन्धी विवादों के स्थाई समाधान के लिए उन्हें सीनियर और जूनियर माफीदारों में बांट दिया गया था। आज शिवराम सकलानी- शीशराम सकलानी, या यूं कहें कि, नागदेव जी सात भाइयों के वंशधर सकलानी टिहरी, अठूर, दिउरी, पडियारगाँव, पुजारगाँव, हवेली, खुरेत, नागणी, धौल्याणी, तिखोन भैंसकोटी, बमराड़ी (टिहरी गढ़वाल); श्रीनगर, पौड़ी, भगत्याणा (गढ़वाल); देहरादून बाजावाला गांव, श्रीपुर, महेन्द्रपुर (देहरादून); सकन्याणी, सकदेना (कुमाऊँ); हरिद्वार, ऋषिकेश आदि कई गांवों, शहरों और छिटपुट क्षेत्रों में बस गए हैं। गढ़वाल में स्थानीय बोलचाल में सकलानी लोगों को आज भी आदर सूचक शब्दों में 'पुजारी जी', 'दीवान जी', 'माफीदार जी' कहकर सम्बोधित किया जाता है।
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