विद्यासागर नौटियाल | |
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जन्म | सितम्बर 29, 1933 |
जन्म स्थान | ग्राम- मालीदेवल, जुवा पट्टी, टिहरी |
पिता | श्री नारायण दत्त नौटियाल |
माता | - |
शिक्षा | अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. |
व्यवसाय | साहित्यकार, राजनेता |
भाषा | हिंदी |
व्यवसाय | साहित्यकार, राजनेता |
मृत्यु | फरवरी 12, 2012 |
विद्यासागर नौटियाल का जन्म 29 सितम्बर 1933 मालीदेवल, जुवा पट्टी, टिहरी गढ़वाल में हुआ। हिन्दी साहित्य के श्रेष्ठ कथाकार। वामपंथी विचारों के राजनेता। वाणी और लेखनी का प्रवाहमान संगम हैं नौटियाल जी। विद्यासागर नौटियाल जी को पहाड़ का प्रेम चन्द्र भी कहा जाता है।
विद्यासागर नौटियाल साहित्यकार बड़े हैं या राजनेता- यह निर्णय देना उतना ही कठिन है जितना यह कहना कि साहित्य में पद्यकार और गद्यकार में कौन बड़ा है। अधिकांश लोग इन्हें राजनीतिज्ञ के रूप में ज्यादा पहचानते हैं, हिन्दी कथाकार के रूप में कम। राजनैतिक जीवन की शुरूआत रियासत टिहरी के सामंती शासन के विरुद्ध जन संघर्ष की भागीदारी से होती है। 18 वर्ष की उम्र में लिखना प्रारम्भ किया और 1953 (20 वर्ष की उम्र) में कहानी 'भैंस का कट्या' जब एक साहित्यिक पत्रिका में प्रकाशित हुई तो आपकी लेखनी चर्चा में आई। उस कहानी का कुछ विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद हुआ। 1957-58 में नौटियाल जी काशी हिन्दू वि.वि. के शीर्षस्थ छात्र नेता के रूप में उभरे और ऑल इंडिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन के अध्यक्ष बने। वहां इन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया। विश्वविद्यालय में पढ़ते आप छात्र नेता और वामपंथी विचारक के रूप में स्थापित हो चुके थे। 1958 में आपने विश्व युवक समारोह में भारतीय प्रतिनिधि मण्डल के नेता के रूप में सोवियत संघ, हंगरी, आस्ट्रिया तथा अफगानिस्तान की यात्रा की। उक्रेइनी गणतंत्र का भ्रमण किया। 1981 में सोवियत संघ में काला सागर के तट पर माल्टा, रूस और जार्जिया का भ्रमण किया।
1959 में टिहरी लौट आए। इसी वर्ष 'उलझे रिश्ते' उपन्यास प्रकाशित हुआ। 1985 तक इनकी कोई पुस्तक प्रकाशित नहीं हुई। किन्तु लेखन जारी रहा। इस बीच जन-आन्दोलनों से जुड़े रहे। टिहरी में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना कर डाली। 1962 में चीनी आक्रमण के समय गिरफ्तार कर लिए गए और 2 वर्ष जेल जीवन बिताया। 1980 में विधान सभा के लिए चुन लिए गए। बाद के वर्षों में कई चुनाव हारे, किन्तु चुनाव लड़ना नहीं छोड़ा।
1985 में 'टिहरी की कहानियां', 1994 में 'भीम अकेला' (यात्रा संस्मरण), 1997 में 'सूरज सबका है' (उपन्यास) प्रकाशित हुए। कहानी 'फट जा पंचधार' और 'सुच्ची डोर' खूब चिर्चित रहीं। भैंस का कट्या, 'सोना' (नत्थ), मुलज़िम अज्ञात, और सन्निपात कहानियां पहले ही चर्चा में आ गई थीं। गढ़वाल विश्वविद्यालय में बी.ए. (प्रथम वर्ष) में हिन्दी साहित्य पाठ्यक्रम में यह कहानी शामिल रही। कुछ साल पहले दूरदर्शन से 'सोना' कहानी को टेली फिल्म के रूप में प्रदर्शित किया गया। 4 जून 2000 को श्री विद्यासागर नोतियाल को देहरादून में पहल साहित्यिक सम्मान दिया गया।
12 फरवरी 2012 शनिवार रात्रि बंगलुरू के एक अस्पताल में विद्यासागर नौटियाल का निधन हो गया।
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