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    राजा का सिंहासन चम्पावत

    चम्पावत नगर से लगभग पौन किलोमीटर दूर ऊंचे स्थान पर राजा का सिंहासन निर्मित है। यह आज के युग में खुले गगन के तले है। सम्भवत जब यह उपयोग में आता होगा, तो इस पर छत आदि अस्थायी प्रबन्ध किया जाता होगा। बताया जाता है कि चद राजाओं के चौपड़ खेलने का स्थान था। पत्थर से बने इस सिंहासन का निर्माण चन्द वंशी राजाओं के क्रम में किस शासक द्वारा किया गया, उसमें इस प्रकार का कोई संकेत नहीं किया गया है। कुछ लोग इसे नटवे की चौपड़ी के नाम से भी जानते हैं। इन लोगों का कथन है कि चन्द राज दरबार का नव्वा (नाई) इस स्थली पर राजा की केश सज्जा करता था, लेकिन यह बात बनावटी प्रतीत होती है। क्योंकि चबूतरे के पत्थरों पर चौपड़ के चिन्ह बने हुए हैं, इसलिए यह स्पष्ट है कि यह चौपड़ खेलने का स्थान ही रहा होगा। चबूतरे के चारों ओर किसी जमाने में सुरक्षा की दृष्टि से अनेक स्तम्भ नुमा पिलर रहे होंगे, क्योंकि अब भी दो पिलर स्थाई रूप से बने हुए हैं।


    इस सिंहासन की विशेषता, इसके उत्तर पश्चिम दिशा की ओर तीन पिलरों पर बना एक त्रिभुज है। यह त्रिभुज सिंहासन के एक कोने में तीन पिलरों पर लगभग 5 फुट लम्बे बल्लियों नुमा पत्थरों है। बल्लियों से बना इन को तीन पिलरों पर रखा गया है। यह स्पष्ट करता है कि तब मापदण्ड का कितना सही आधार था। पत्थर के त्रिभुज पर एक बड़ा पत्थर रखा गया है जिसमें कुशल कारीगरी की गयी है। ऐसा ही एक पत्थर त्रिभुज के निचले भाग में सिंहासन के फर्स पर रखा गया है। एक चौकी प्राचीन पत्थरों से बहुत मजबूत बनाई गयी है। उसकी अन्य विशेषता यह है कि यह एक ऐसे स्थान से बनायी गयी है, जहां से सूर्योदय और सूर्यास्त साफ-साफ दिखता है। सिंहासन के चारों ओर आकर्षक कला का चित्रण किया गया है इनमें कुछ नृत्य मुद्रा में नृत्यांगनाओं के चित्र, फूल, पत्तियां, अल्पना एवं एक स्थान पर तो कबूतरों के चित्र भी अंकित हैं। यह कला तत्कालीन स्थापत्य का आज भी जीवन्त परिचायक है।


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