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मध्यमहेश्वर | |
स्थापना: | अज्ञात |
स्थान: | मनसूना, रुद्रप्रयाग |
विकाशखंड: | ऊखीमठ |
स्थापित: | पांडवों द्वारा |
समुद्र तल ऊंचाई: | 3417 मीटर |
प्राथमिक देवता: | शिव |
पंचकेदार में तृतीय स्थान में मध्यमहेश्वर को माना गया है। मध्यमहेश्वर में भगवान शिव की नाभी की पूजा की जाती है। मध्यमहेश्वर उत्तराखण्ड के गढ़वाल क्षेत्र के रुद्रप्रयाग जिले में समुद्रतल से 3289 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। चारों और हिमालय पहाड़ो से घिरे इस रमणीय स्थान की खूबसूरती देखते ही बनती है। मध्यमहेश्वर मंदिर से 3-4 किमी० ऊपर एक बुग्याल आता है जहाँ पर एक छोटा सा मंदिर है जिसे बूढ़ा मध्यमहेश्वर कहा जाता है। यहाँ से हिमालय के चौखम्बा पर्वत का भव्यदर्शन होता है। चौखम्बा के साथ साथ मन्दानी पर्वत, केदारनाथ हिमालय श्रेणी आदि के दर्शन भी होते है। भक्ति के साथ साथ यह जगह ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए भी खासी अहम् मानी जाती है। मध्यमहेश्वर के कपाट छः माह के लिए खोले जाते है। बाकी सर्दियों के छः माह उखीमठ में भगवान की पूजा अर्चना की जाती है।
किंवदंती
मध्यमहेश्वर भगवान शिव के पंचकेदार मंदिरों में से एक है। पंचकेदारों में भगवान शिव के विभिन्न अंगों की पूजा की जाती है। शिवपुराण के अनुसार महाभारत युद्ध के पश्चात पांडवों को गुरु हत्या, गोत्र हत्या, अपने भाइयो की हत्या का दुःख सताने लगा। इसके प्रायश्चित का उपाय जानने के लिए लिए वे श्रीकृष्ण के पास गए, उनके समझाने पर भी जब पांडव प्रायश्चित करने का हठ नहीं छोड़ा तो श्रीकृष्ण ने उनसे वेदव्यास जी के पास जाने को कहा। वेदव्यास ने उन्हें कैलाश क्षेत्र में जा के भगवान शिव की तपस्या करने को कहा और उन्हें प्रसन्न कर अपने पाप से मुक्ति पाने का मार्ग बताया। बहुत समय हिमालय में भ्रमण के दौरान जब एक स्थान पर आकर कुछ दिन वही भगवान शिव की स्तुति करने लगे तब थोड़ा आगे एक विशालकाय बैल पर उनकी नज़र पड़ी। माना जाता है स्वयं भगवान शिव उन की परीक्षा लेने हेतु बैल रूप में वहां प्रकट हुए थे, लेकिन गोत्र हत्या के दोषी पांडवो से नाराज़ थे और उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे। परन्तु पांडवो ने उन्हें पहचान लिया था और उनका पीछा करने लगे। एक समय ऐसा आया की बैलने अपनी गति बढ़ानी चाही लेकिन भीम दौड़कर बैल के पीछे आने लगे। ये देख भगवान शिव रुपी बैल ने स्वयं को धरती में छुपाना चाहा, जो हि बैलका अग्र अर्ध भाग धरती में समाया, वैसे ही भीम ने बैल की पूंछ अपने हाथो से पकड़ ली। यही पीछे का भाग केदारनाथ के रूप में विद्यमान हुआ। कहा जाता है की बैलका अग्र भाग सुदूर हिमालय क्षेत्र में जमीन से निकला जो की नेपाल में था, जो की प्रसिद्ध पशुपति नाथ नाम से पूजा गया। बैल का शेष भाग यानी भुजाएं तुंगनाथ में, नाभि या मध्य भाग मदमहेश्वर में, मुख रुद्रनाथ में (शेष नेपाल पशुपति नाथ में) तथा जटा एंकल्पेश्वर में निकली।
कैसे पहुँचे
मदमहेश्वर जाने के लिए उखीमठ पहुँच कर, रांसी तक मोटर मार्ग है। रांसी मोटर मार्ग से जुड़ा आखिरी गाँव है। यहाँ से मदमहेश्वर को लगभग 23 किमी० का पैदल मार्ग है। पैदल मार्ग में गोंदहार, मै खम्बा चट्टी आदि छोटे छोटे गांव मार्ग में मिलते है। जहाँ रहने और खाने पीने की उचित व्यवस्था है। गांव के लोग सरल और सौम्य मन से आपका स्वागत करते मिलेंगे। सम्पूर्ण मार्ग प्राकृति कनज़ारों से भरा होता है। मध्यमहेश्वर जाने के लिए इन गावों से खच्चर पोर्टर भी मिल जाते है।
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