लखुडियार |
लखुडियार अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ मुख्य सड़क मार्ग दलबैण्ड अथवा हनुमान मन्दिर के निकट ग्राम दिगोली की सीमा में विद्यमान है। हिमालय की गोद बिनसर से निकलती दो सरितायें जहाँ से एक ओर सर्पाकार वर्तुल में उत्तर की ओर सुयाल बन जाती है और जिनके तटों के दोनों ओर चीड़ वृक्षों के झुरमुट के आमने-सामने निहारते कई शिलाश्रय दृष्टिगत होते हैं। वहीं है लाखुडियार जो प्रागैतिहासिक कला का आकर्षक केन्द्र है। यह चित्रित शैलाश्रय सुयाल नही के दायें किनारे एक ऊँची ढलवी चट्टान पर स्थित है। यह शैलाश्रय दलबैण्ड में निर्मित पुलिया एवं हनुमान मन्दिर से स्पष्ट दिखाई देता है। नदी के पुल का नाम भी लखुडियार पुल के नाम से नामित है। यह शैलाश्रय मुख्य बैण्ड से लगभग 35 मीटर आगे है। लखुडियार के सम्बन्ध में स्थानीय लोगों की आम धारणा है कि "प्राचीन काल में यहाँ पर दो बारातों की आपस में भैंट होने से खूनी संघर्ष हो गया। यह संघर्ष इतना विकराल हुआ था कि जिनके खून से इस प्रकार के चित्र बना दिये गये, और लाख उडियार भी बनाये गये" आज भी आम जन में यह धारणा सत्य है परन्तु खून से निर्मित चित्र नहीं है। यदि लोक में देखा जाये तो अवश्य ही आज भी पिछड़े एंव ग्रामीण क्षेत्रों में (दो दुल्हों) दो बारातों की भैट नहीं करवाते हैं। पूर्व की तरह आज भी दो में से एक को उनमें से छुपा देते अथवा एक दूसरे पर नजर नहीं डालते हैं।
इसकी छत वाली चट्टान फर्श से बहुत आगे निकली हुई है। स्थल को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि फर्श का अग्रभाग मूलतः लगभग चार-पाँच मीटर टूट चुका है। आज क्षेत्रीय पुरातत्व इकाई, अल्मोड़ा द्वारा स्थल में प्रतिधारक दीवार और रेलिंग का निर्माण किये जाने से इन बने चित्रों को देखा जाना संभव हुआ है। इस शैल में बने चित्र अधिकतम् गहरे गेरूवे रंग में बने हैं। किन्तु कहीं-कहीं पर काले तथा सफेद रंग के चित्र भी दृष्टिगोचर होते हैं। चित्रों की विषय वस्तु में मुख्यतः पक्तिबद्ध मानव, पशु, वृक्ष, तंरगित रेखायें, ज्यामितीय नमूने युक्त अंय पहचानी आकृतियाँ भरी हुई हैं जबकि कुछ रेखीय भी हैं।
मुख्यतः मानवाकृत आकृतियां पक्तिबद्ध में एक दूसरे का हाथ पकड़े हुऐ चित्रित किये गये हैं। एक पंक्ति में दस अथवा उससे अधिक मानवाकृतियाँ बनायी गयी हैं। इनकी विशेषता यह है कि प्रथम मानव से अन्तिम मानव एक दूसरे का हाथ पकडे़ हुए छोटे होते जा रहे हैं। एक दृश्य में आठ मानव आकृतियाँ चित्रित हैं जिसमें प्रथम 20 सेमी. तथा अन्तिम 10 सेमी. की है। इन सभी मानवाकृतियों के सिर पर पीछे की ओर बालों का ऊँचा जूड़ा भी बनाया हुआ प्रतीत होता हैं। जिससे यह प्रतीत होता है कि ये सभी स्त्री हैं, जैसे एक दृश्य में मानव की दौड़ता हुआ चित्रित किया गया है।
चित्रित शैलाश्रय |
किसी प्राचीन चितेरे जैसी पशुओं की आकृति बिल्कुल स्वभावगत बनायी गयी है। यद्यति पशुओं के चित्रों की संख्या बहुत कम है। एक दृश्य में पशु आकृतियाँ चित्रित हैं, जिसमें दोनों पशुओं को साथ-साथ चलते दिखाया गया है। इस चित्र से पशु समूह का दृश्य स्वाभाविक अनुभव होता है। बकरी की तरह की एक पशु आकृति बनी है जिसका पेट सामान्यता कुछ अलग है। जिसे पुरातत्वविदों द्वारा गर्भवती पहाड़ी बकरी के रूप में पहचानने की कोशिश की गयी है कि प्रागैतिहासिक कलाकार ने उस समय शरीर रचना का सूक्ष्म निरीक्षण कर अपने चित्रों मे उतारना प्रारम्भ कर दिया था। इस शैलाश्रय में पंक्तिबद्ध तथा एकांकी वृक्षाकृतियाँ भी बनायी गयी हैं। एक दृश्य में पाँच पेड़ तथा लहरदार युगल रेखाओं द्वारा सम्भवतः वन का दृश्य चित्रित करने का प्रयास किया गया है।
शैलाश्रय के एक अन्य दृश्य में मानव, वृक्ष तथा पशु की आकृतियाँ पास-पास बनायी गयी हैं। दीवार सदृश्य पेड़ के एक पार्श्व में दौड़ता हुआ मानव तथा दूसरे पार्श्व में बकरी के आकार की पशु आकृतियाँ चित्रित हैं। एक दृश्य में अनेक मानवाकृतियाँ क्रियाशील दृष्टिगोचर हैं जो एक ओर दौड़ते हुए से प्रतीत होती है जैसे ये लोग काई हथियार लिए सम्भवतः किसी शिकार के पीछे दौड़ रहे हों।
उपरोक्त मानवाकृतियाँ अन्य बने मानव समूहों से पूर्णतया भिन्न हैं इनमें से लोग एक दूसरे का हाथ नहीं पकड़े हुए हैं। जबकि अन्य समूहों में पंक्तिबद्ध मानव एक दूसरे के हाथ पकड़े चित्रित किये गये है। प्रश्नगत दृश्य में ये मानवाकृतियाँ अपने हाथों में कोई वस्तु धारण किये हुए हैं। इस कारण इस दृश्य की आखेट दृश्य से समानता की जा सकती है।
लखुडियार के चित्रों में मानव तथा वृक्षों के चित्र समान आकृति के प्रतीत होते हैं, किन्तु मानवकृतियों में स्पष्ट रूप से गर्दन सहित शीर्ष बनाया गया है। किसी मानवाकृतियों में सिर पर पीछे की ओर बालों के लम्बे जुड़े अथवा चोटी बनायी गयी है। केशों के जुड़ों सहित सम्भवतः नारी आकृतियाँ प्रतीत होती हैं। पुरूषाकृतियों का घुमावदार शीर्षभाग उत्तम प्रतीत होता है।
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