चंपावत जिले के लोहाघाट से लगभग 5 किमी0 की दूरी पर स्थित सुंई व बिशुंग गांव में यह महोत्सव मनाया जाता है। सुंईं के सूर्यनारायण / आदित्य महादेव व मां भगवती मंदिर में श्रावण मास की पूर्णिमा ( रक्षाबंधन के दिन ) के दिन यह महोत्सव होता है जो कि पांच दिन चलता है। इस महोत्सव में सबसे पहले श्रावण शुक्ल एकादशी को सुंई बिशुंग गावं के देवडांगरों की मौजूदगी में मां भगवती की गुप्त प्योली ( जिसमें मां भगवती के अस्त्र - शस्त्र आदि होते है ) और माता का डोला मंदिर प्रांगण और आदित्य महादेव मंदिर प्रांगण में भ्रमण करता है। इसी के साथ यहां महोत्सव में सांस्कृतिक महोत्सव , प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती है। साथ ही रात्रि जागरण भी होता है। मेले के अंतिम दिन एक देवरथ तैयार किया जाता है जिसे कन्धों में रखकर देवयात्रा कराई जाती है। यह देवयात्रा सुंई , पऊ, चनकांडे, सुंईडूंगरी, खैसकांडे इन पांच गावों से होकर बिशंुग गांव के कर्णकरायत , चैड़ाढ़ेक आदि 20 गांवों से होकर बुड़चैड़ा तक जाती है। बिशुंग के बीस गांवों की परिक्रमा करते हुए देवयात्रा वापिस आदित्य देव मंदिर पहुंचती है। यह यात्रा लगभग 20 से 25 किमी0 तक लम्बी यात्रा होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सुंईं वही क्षेत्र है जहां मां दुर्गा का बाणासुर से युद्ध हुआ था। सुंईं क्षेत्र में स्थित देवी के चारों मंदिर वही स्थान पर बनाये गये जहां जहां पर युद्ध हुआ था । इन्हें चार द्योली कहा जाता हैं।
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