भक्त दर्शन (1912-1991): भक्त दर्शन जी का जन्म 12 फुरवरी 1912 ग्राम भौराड़, पट्टी साबली गढ़वाल में हुआ। कालान्तर में गांव मसेटी, बाद में जयहरीखाल, लैन्सडौन और अन्त के कुछ वर्षों से देहरादून रहने लगे थे। लोकप्रिय सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता। गांधीवाद के सच्चे अनुयायी। मूर्धन्य पत्रकार और लेखक। केन्द्रीय मंत्री परिषद में स्थान पाने वाले गढ़वाल क्षेत्र के पहले सांसद। सच्चरित्र, निरभिमानी, निस्वार्थ नेता, मितभाषी, शान्त एवं सरल स्वभाव वाले जनप्रतिनिधि। गढ़वाल का गांधी नाम से परिचित एक आदरणीय नाम। मूल नाम राजदर्शन सिंह।
ब्रिटिश काल में इनके पिता श्री गोपाल सिंह रावत जिला बस्ती की बांसी तहसील में रजिस्ट्रार नियुक्त थे। वहीं इनका जन्म हुआ। भक्त जी चार भाइयों में सबसे छोटे थे। सम्राट जार्ज पंचम के राज्यारोहण स्मृति में पिता ने अपने बालक का नाम 'राजदर्शन' रख दिया था। कालान्तर में अपने से बड़ों पर सदैव भक्तिभाव रखने के कारण यह 'भक्तदर्शन' परिवर्तित हो गया। भक्त जी को 'दर्शन' शब्द से इतना मोह था कि उन्होंने अपने संपूर्ण व्यक्तिगत परिवार को 'दर्शनमय' करा डाला। जगदर्शन, प्रियदर्शन, हरिदर्शन, संतदर्शन और चन्द्रदर्शन नामों से अपने पांचों पुत्रों को उन्होंने दर्शनमय कर दिया।
प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता के साथ, हाईस्कूल और इन्टरमीडिएट डी.ए.वी. कालेज, देहरादून से बी.ए. शान्ति निकेतन और एम.ए. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण किया। शिक्षा काल में ही इनके जीवन पर स्वामी दयानन्द के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ गया था। 1929 में जब ये दसवीं कक्षा के छात्र थे तो गांधी जी के व्यक्तित्व से अत्यन्त प्रभावित हुए और लाहौर कांग्रेस में स्वयंसेवक बनकर सम्मिलित हुए। 1930 में नमक आन्दोलन के दौरान गिरफ्तार हुए और पहले देहरादून और बाद मे आगरा जेल भेज दिए गए। यहीं से इनके राजनीतिक जीवन का शुभारम्भ हुआ। इसके बाद 1941 में प्रारम्भ और अन्त में और 1942-45 में अनेक बार जेल यात्रा की। 1931 मे इनका विवाह शिवरात्रि के दिन सावित्री देवी से सम्पन्न हुआ।
"कर्मभूमि' का प्रकाशन गढ़वाल की एक ऐतिहासिक घटना है। भक्त जी ने स्व. श्री भैरव दत्त धूलिया के सहयोग से 1939 में इस साप्ताहिक पत्र का संपादन आरम्भ किया। 19 फरवरी, 1939 को बसन्त पंचमी के दिन इसके प्रथम अंक का विमोचन उ.प्र. के तत्कालीन प्रीमियर श्री गोविन्द बल्लभ पन्त ने किया। इस समाचार पत्र ने गढ़वाल में एक नई राजनैतिक जागृति लाई। राष्ट्रीय विचारों का संवाहक था 'कर्मभूमि' साप्ताहिक। इसकी संकल्पना पवित्र और अवधारणा ऊंची थी। जनमानस इसके अंकों की अगुवानी के लिए आतुर रहता था।
टिहरी रियासत की जनक्रान्ति में भक्त दर्शन जी का अपूर्णीय योगदान रहा। 'कर्मभूमि' के माध्यम से इन्होंने रियासत में कांग्रेसी विचारधारा और स्वाधीनता प्राप्ति के लिए संघर्ष का आह्वान किया। टिहरी राज्य प्रजामंडल की स्थापना में श्रीदेव सुमन प्रभृति नेताओं की खुलकर सहायता की। टिहरी मुक्ति संग्राम में सक्रिय भागीदारी निभाई और टिहरी की जनता को दोहरी गुलामी से मुक्ति दिलाने में भरपूर सहयोग दिया।
स्वाधीनता प्राप्ति के बाद भक्त जी राजनीतिक, प्रशासनिक और सामाजिक क्षत्र म उतर। 1948 में आप गढ़वाल जिला परिषद के निर्विरोध अध्यक्ष चुने गये। 1950-52 में नियोजन अधिकारी, गढ़वाल और देहरादून रहे। 1952 में हुए प्रथम आम चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में गढ़वाल क्षेत्र से सांसद चुने गए। नवम्बर 1963 से मार्च 1971 तक केन्द्र सरकार में शिक्षा उप मंत्री, राज्य मंत्री और इसके बाद परिवहन एवं जहाजरानी मंत्रालय में उप मंत्री रहे। 1972 में स्वेच्छा से राजनीति से सन्यास ग्रहण किया। भक्त जी राजनीतिक दांव पेंचों और छद्म राजनीति से सदैव दूर रहे। इनके राजनीतिक जीवन में सदा शुचिता बनी रही। यही कारण रहा कि इनके राजनीतिक प्रतिद्वन्दी भी इन्हें आदर प्रदान करते रहे। संसद में ये सदा हिन्दी में अपनी बात रखते थे। पण्डित नेहरू और श्रीमती इन्दिरा गांधी इनके हिन्दी प्रेम से प्रभावित थे। 1971-72 में इन्हें उ.प्र. खादी बोर्ड का उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया। 1972-77 की अवधि में आप कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति और 1988-90 तक उ.प्र. हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष पद पर रहे।
भक्त जी सशक्त लेखक थे। उनकी भाषा अत्यंत सरल और बोधगम्य रही। उनकी लिखा पुस्तक गढ़वाल की चिरस्मरणीय निधि है। 'गढ़वाल की दिवंगत विभूतियां', 'सुमन स्मृति ग्रन्थ', 'कलाविद मुकुन्दीलाल बैरिस्टर स्मृति ग्रन्थ' और स्वामी रामतीर्थ संबंधी प्रकाशन उनकी कालजयी कृतियां तथा ललित निबन्ध हैं।
उन्यासी वर्ष की उम्र में 30 अप्रेल 1991 को देहरादून में डॉ. भक्तदर्शन का निधन हो गया। आज गढ़वाल का गांधी हमारे मध्य नहीं है, किन्तु उनके जीवन की शुचिता, गढ़वाल प्रेम, निष्काम समाज सेवा और आदर्श सदैव हमारा मार्ग दर्शन करते रहेंगे। इनके महाप्रयाण पर अपनी भावपूर्ण श्रद्धान्जलि में श्री गिरिराज किशोर ने इन्हें 'एक आहत हिन्दी सेवी', श्री लाल थपलियाल ने 'अजात शत्रु', श्री बुद्धि बल्लभ थपलियाल ने 'यादों की छींट', श्री अर्जुन सिंह गुंसाई ने 'आत्म प्रशंसा से दूर', श्री धर्मानन्द उनियाल 'पथिक' पत्रकार ने 'गढ़वाल का गांधी', और डा. गोविन्द चातक ने 'हमारे स्तंभ' कहा है।
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