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    मथुरा दत्त मठपाल

    Mathura Dutt Mathpal

    मथुरा दत्त मठपाल

    जन्म29 जून, 1941
    जन्म स्थानग्राम- नौला, भिकियासैंण, अल्मोड़ा
    माताकांति देवी मठपाल
    पिताहरिदत्त मठपाल
    मृत्यु9 मई, 2021

    मथुरादत्त मठपाल का जन्म 29 जून 1941 को भिकियासैंण के नौला गांव में हुआ था। मठपाल जी के पिता एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गांव तथा मानिला से शुरू हुई। हाइस्कूल व इंटर क्रमशः रानिखेत नेशनल हाईस्कूल व मिशन इंटर काॅलेज से किया। आगरा विश्वविद्यालय से बी.ए. और बी.टी. करने के बाद ये शिक्षक के तौर पर पढ़ाने लग गये। इन्होने इतिहास, राजनीति शास्त्र, प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति में एम. ए. भी किया। लगभग 35 साल तक इतिहास के प्रवक्ता के रूप में पढ़ाने के बाद 1998 में उन्होने स्वैच्छिक रिटायरमेंट ले लिया था।


    कविता लेखन इन्होने बचपन से ही शुरू कर दिया था। कविताओं के साथ साथ कहानी लेखन भी शुरू किया। इनकी कहानियां व कवितायें कई पत्रिकाओं में छपती रही। 45 वर्ष की उम्र में इन्होने कुमाउनी में लिखना शुरू किया। मठपाल जी ने 'रामगंगा प्रकाशन' नाम की प्रेस भी शुरू की जहां से वे अपनी व औरों की किताबें प्रकाशित करने लगे जिनमें शेर सिंह बिष्ट 'अनपढ़', हीरा सिंह राणा, गोपाल दत्त भट्ट आदि कवियों व लेखकों की किताबें प्रकाशित की। सन् 2000 में इन्होने एक कुमाउनी पत्रिका 'दुदबोलि' भी निकाली। रिटायरमेंट के बाद रामनगर में रहकर उन्होने इस पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया। इन्होने चंद्रकुंवर बर्त्वाल की हिंदी कविताओं का कुमाउनी अनुवाद भी किया।


    प्रमुख कविता संग्रह


    ✤ आ्ङ आ्ङ चिचैल हैगो।
    ✤ पैं मैं क्यापक कै भैटुनु।
    ✤ मनख सतसई
    ✤ फिर प्यौंलि हंसै
    ✤ राम नाम भौत ठुल
    ✤ कौ सुवा का्थ कौ (कहानी संकलन)


    सम्मान और पुरस्कार


    ✤ 1988 में सुमित्रानंदन पंत नामित पुरूस्कार
    ✤ 2009 में कुमाउनी साहित्य सेवी सम्मान
    ✤ 2011 में गोविंद चातक पुरूस्कार
    ✤ 2014 में साहित्य अकादमी पुरूस्कार
    ✤ 2015 में शेर सिंह बिष्ट ‘अनपढ़’ कुमाउनी कविता पुरूस्कार


    उनकी कुछ कविताएं


    (1)
    हिमांचलै चेलि पारभति
    द्विए दिना में बुड़ी जैं।
    घर - बणा थुपुड़ बौकनै
    यो कदुक लझोड़ी जैं।
    यो पारभति चैगिर्दी रोज्जै थुपुड़।
    छान में मोऔ थुपुड़।
    हाङ में घा थुपुड़।
    मलखन रोटां थुपुड़।
    तलखन लुकुड़ां थुपुड़।
    चैंतर में भना थुपुड़।
    चाख में नना थुपुड़।
    यो थुपुड़ां कैं ठेलनै-बोकनै।
    पारभती कमर दुणमुणी जै।
    हिमांचलै चेलि पारभति
    द्विए दिना में बुड़ी जैं।


    (2)
    जनम जनम हिमवंत मुलुका
    ढोक हो पैलाग हो।
    म्यरि हिकोइ नित रौ सिलगनै
    त्यरि पिरीत आग यों।
    पुण्य-पावन धुइ माटि तेरी
    म्यर पराणौ फाग छौ।
    स्वच्छ सुबासिलि पौन अरड़ि यौ।
    म्यर सांसोकि राग छौ।
    त्यरि कोखि मा जनम लियो माँ
    धन धना म्यर भाग हौ।


    (3)
    तुमरै मंच - तुमरै झंड
    तुमरी भीड़ - तुमरै डंड
    तुम झंड फहरूंछा
    वी में बादी गुलाब - हाजरी फूल
    तुमर ख्सरां में चढ़ि जानी।
    और वीक दस गुण
    बकौल - मेहला फूल
    हर साल
    हमर ख्वरां में झड़ि जानि।


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