अनुराधा निराला |
अनुराधा निराला जी तब से उत्तराखंड की सुरीली आवाज से गीत दे रही हैं जब वहां के लोग संगीत से ज्यादा रूबरू नहीं थे। नरेंद्र सिंह नेगी के साथ उनके गानों की जुगलबंदी पहाड़ के लोगों को खूब पसंद आती है। शादी के बाद अनुराध निराला से वह अनुराधा निराला कोठियाल बन गईं हैं।
बचपन
अनुराधा निराला का जन्म 16 मार्च को उत्तराखंड में हुआ था और बचपन से ही उन्हें संगीत में काफी दिलचस्पी थी। उनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि गढ़वाल की स्वर कोकिला कही जाने वाली लोकगायिका अनुराधा निराला कोठियाल ने अपने गायन की शुरुआत तब की थी जब वे 12वीं कक्षा की छात्रा थी। तब पहली बार उन्होंने किसी प्रोफेशनल सिंगर की तरह गाना गाया और उनका गाना सभी को काफी पसंद आया था। अनुराधा ने गुरु शिष्य परम्परा के तहत शान्ति शर्मा से संगीत का ज्ञान प्राप्त किया है।
करियर
अपने करियर के बारे में अनुराधा बताती हैं कि 1992-93 से उन्होंने अपनी लोकसंस्कृति की यात्रा करनी शुरू कर दी थी। उनका पहला गीत उत्तराखंड में सबसे ज्यादा गाने गा चुके नरेंद्र सिंह नेगी के साथ रिलीज हुआ था और बाजार में जब यह गाना आया तो खूब हिट हो गया था। उनके उस गाने के बोल थे ज्यू त यन ब्वनु छ आज नाची-नाचीकि, नचै द्यूं त्वे हथ्युं हथ्युं म धैरिकी...
उपलब्धियां
1998 में अनुराधा ने सिंगिंग के एक बड़े प्लेटफॉर्म सरेगामा के लिए ऑडीशन दिया और उस ऑडीशन में वह पास हो गईं। वह उसके सेमीफाइनल तक पहुंच गई थी। वहां पर भी लोगों ने उनकी गायकी को काफी पसंद किया था। वे अपने पिताजी को अपना आदर्श इसलिए मानती हैं क्योंकि उनके पिताजी ने दिल्ली में रहकर भी उन्हें अपनी बोली-भाषा से जुड़े रहने व संगीत के प्रति अभिरुचि में हर संभव सहायता पहुंचाई है।
शिक्षा-दिक्षा
अनुराधा सिंगिंग के साथ पढ़ाई-लिखाई में भी अव्वल थीं। इसलिए उन्होंने एम ए म्यूजिक करने का फैसला किया और उसके बाद उन्होंने अपनी मेहनत से नेट क्वालिफाई किया। इसी मेहनत का फल है कि आज वह बतौर प्रोफेसर दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दुस्तानी क्लासिकल का प्रशिक्षण देती हैं।
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