ज्ञानानन्द बधाणी (अनुमानित जीवनावधिः सत्रहवीं सदी का पूर्वार्द्ध): पण्डित ज्ञानानन्द कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। मूलतः कन्नौज के आसपास किसी गाँव के रहने वाले थे। सन् 1665 के लगभग पण्डित ज्ञानानन्द अपने कुछ मित्रों-परिचितों के साथ कन्नौज से हिमालय के इस क्षेत्र में पहुंचे। यहां पहुंचने का उनका उद्देश्य बद्रीनारायण की यात्रा हो सकता है। दूसरी सम्भावना, मुस्लिम शासकों की हिन्दू विरोधी नीतियों से अपने धर्म की रक्षा करना और तीसरी सम्भावना, स्थाई रूप से देवभूमि केदारखण्ड में निवास करना। यह सब कयास हैं; इतिहास इस ओर मौन है। आगे की कहानी कुछ इस प्रकार बनती है:- पण्डित ज्ञानानन्द दस्तूर के मुताबिक गढ़वाल नरेश फतेह शाह को अभिवादन करने राज दरबार में पहुंचे। राजा को इन्होंने देवभूमि में आने का अपना ध्येय बताया। इनकी बातचीत और योग्यता से राजा फतेह शाह अत्यधिक प्रसन्न हुए और इन्हें गढ़देश में ही स्थाई प्रवास करने की आज्ञा प्रदान कर दी। इन्हें बदाण क्षेत्र (अब जिला चमोली) में कुछ गाँव दान स्वरूप प्रदान किए। उस समय राजाओं द्वारा ब्राह्मणों को भूमि दान करने की परम्परा रही थी। बदाण क्षेत्र में निवास करने के कारण पण्डित ज्ञानानन्द 'बदाणी' कहलाए। कालान्तर में ये 'बदाणी' से 'बधाणी' हो गए।
एक अनुश्रुति के अनुसार गढ़वाल नरेश फतेह शाह को इन्होंने उस समय यथेष्ठ सहायता दी, जब कुमाउंनी फौज ने गढ़वाल पर आक्रमण किया और पिण्डर नदी तक धावा बोल दिया था। ज्ञातव्य है, बदाण क्षेत्र पिण्डर नदी से सटा है। इनकी राजभक्ति और सूझबूझ से प्रसन्न होकर गढ़वाल नरेश ने इन्हें बदाण के एक छोटे से हिस्से का प्रमुख बना दिया। आगे चल कर लोगों ने इन्हें ‘बदाण का गढ़पति' कहा। 'बदाण गढ़', बधाण गढ़, गढ़वाल के 62 गढ़ों में से सामरिक दृष्टि का महत्वपूर्ण गढ़ रहा है। उन दिनों गढ़वाल-कुमाऊँ के राजाओं की वैमनस्यता चरम पर थी। आए दिन फौजी झड़पों, लूटपाट से सीमावर्ती क्षेत्रों में अराजकता की सी स्थिति बनी रहती थी। जन जीवन अत्यधिक अशान्त हो गया था। परिणामस्वरूप लोगों ने इन क्षेत्रों से सुरक्षित स्थानों के लिए पलायन शुरू कर दिया। उसी दौर में कुमाऊँ-गढ़वाल से बहुत सी जातियां इधर-उधर हुईं। इनके वंशज जो कुमाऊँ की ओर गए वे उन स्थानों पर बुधानी (बुधाणी), बधाणी और इसी से मिलते-जुलते दूसरे नामों से जाने गए। जो टिहरी की ओर आए वे बदाणी से बधाणी कहे जाने लगे। आज पण्डित ज्ञानानन्द के वंशज कुमाऊँ-गढ़वाल में यत्र-तत्र मिलते हैं। बधाण गाँव, नकोट (नवाकोट), खमोली- टिहरी गढ़वाल और छाना, सिंगरौली, आदि और छिटपुट गांव कुमाऊँ में मिलते हैं। बधाण परगना, चमोली क्षेत्र में बसे बदाणी जाति के कुछ लोगों ने अपनी उप-जाति बदल दी है। इस सम्बन्ध में पर्याप्त शोध की आवश्यकता है।
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