गोविन्द चातक | |
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जन्म | दिसम्बर 13, 1933 |
जन्म स्थान | ग्राम- सरकासैणी, पट्टी लोस्तु, टिहरी |
पिता | श्री धाम सिंह कंडारी |
माता | श्रीमती चन्द्र देवी |
शिक्षा | एम.ए, पी.एच.डी |
व्यवसाय | प्राध्यापक, लेखक |
उपनाम | गढ़वाली लोक साहित्य के जनक |
भाषा | गढ़वाली, हिंदी |
मृत्यु | जून, 2007 |
गोविन्द चातक- प्रो. (1933 - 2007): ग्राम सरकासैणी, पट्टी लोस्तु, टिहरी गढ़वाल। लेखक, कवि, कहानीकार और नाटककार। गढ़वाली भाषा साहित्य के विशेषज्ञ। गढ़वाली लोक साहित्य के पहले संग्रहकर्ता और लोकगीतों के हिन्दी अनुवादक। हिन्दी और गढ़वाली के साधु-पुरुष, निरभिमानी साहित्यकार और मनीषी समीक्षक।
गोविन्द चातक जी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा टिहरी से और देहरादून से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की। स्नातक उत्तीर्ण उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से किया और उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. किया और आगरा विश्वविद्यालय से ही पी.एच.डी की उपाधि प्राप्त करी उनका शोध विषय "गढ़वाली की उपबोलियाँ व उसके लोक गीत" था।
अध्ययन काल से ही गढ़वाली लोक साहित्य की ओर अभिमुख रहे। 1955 में 'गढ़वाली लोकगीत' और 'गढ़वाली लोक गाथा' नाम की दो पुस्तकें देहरादून से प्रकाशित हुईं। 'जंगली फूल' एकांकी संग्रह और 'गीत वासन्ती' तथा 'फूलपाती' गढ़वाली कविता संग्रह निकले। गढ़वाली की रवांल्टी उपबोली, उसके लोकगीत और उसमें उपलब्ध संस्कृति-शोध प्रबन्ध पर आपने डाक्टरेट की डिग्री ली है। 1967 में डा. चातक का 'गढ़वाली लोकगीत एक सांस्कृतिक अध्ययन' नामक विद्वतापूर्ण ग्रन्थ प्रकाश में आया। तत्पश्चात 'मध्य पहाड़ी का भाषा शास्त्रीय अध्ययन'। नाट्य लोचन के क्षेत्र में इनके लिखे अनेक ग्रन्थ भारतीय विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में निर्धारित हैं; जैसे नाटकः 'स्वरूप और संरचना', प्रसाद के नाटक; 'सर्जनात्मक धरातल और भाषिक चेतना', 'दूर का आकाश' आदि। संस्कृतिः 'समस्या और सम्भावना' कृति 1994 में प्रकाशित हुई। इनके अतिरिक्त मध्य पहाड़ी का भाषा शास्त्रीय आगमन', 'नाटककार जगदीश चन्द्र माथुर', 'आधुनिक नाटक का मसीहाः मोहन राकेश, रंगमंच कला और दृष्टि, नाट्य भाषा, आधुनिक हिन्दी नाटक भाषिक और संवादीय संरचना, लड़की और पेड़ (कहानी), काला मुँह, केकड़े और दूर का आकाश (नाटक), आपकी अन्य कृतियां हैं।
आकाशवाणी दिल्ली के ड्रामा अनुभाग में आप चार वर्ष सहायक प्रोड्यूसर रहे। राजधानी कालेज दिल्ली से सेवानिवृत्त प्राध्यापक। दिल्ली वि.वि. में नाटक और रंगमंच विषय का अध्यापन और शोध निर्देशन किया। अपनी साहित्यिक सेवाओं के लिए आप अनेक बार पुरस्कृत किए गए; यथा- रंगमंच कला और दृष्टि' तथा नाटक 'दूर का आकाश और काला मुंह' के लिए उ.प्र. हिन्दी संस्थान, 'दूर का आकाश' (नाटक), दिल्ली अकादमी, दिल्ली तथा 'बाँसुरी बजती रही' कृति के लिए साहित्य कला परिषद, दिल्ली प्रशासन द्वारा। डा. चातक ने कुछ ग्रन्थों का भी संपादन किया है। जिनमें डा. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल के निबन्ध महत्वपूर्ण हैं।
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