KnowledgeBase


    एकतारा

    ektara

    ‌एकतारे का चलन केवल साधु-सन्तों द्वारा भक्ति गीतों को गाने में किया जाता है। इसका प्रयोग स्वर वाद्य के रूप में किया जाता है। इस वाद्य पर एक ही स्वर उत्पन्न करके उसे आधार स्वर मानकर लोक सन्त गायक मग्न होकर गाते हैं। इस वाद्य का निर्माण "लगभग 90 सेंटीमीटर लम्बे तथा 15 सेन्टीमीटर की परिधिवाले बांस के एक सिरे पर लगभग 5 से. मी. दूर खूटी में तार फंसाकर बांधा जाता है। दूसरी ओर 60 सेमी. व्यास के तुम्बे में दोनों ओर दण्ड की परिधि के नाप के आर-पार छेद बनाकर दण्ड को तुम्बे में दोनों ओर थोड़ा आगे निकालकर तुम्बे में फिट कर दिया जाता हैं। तुम्बे में सरेस आदि मसाला लगाकर दण्ड की जुड़ाई पक्की कर दी जाती है। तुम्बे के लगभग 50 से०मी० परिधि की गोलाई में काटने के पश्चात् पतली खाल मढ़कर चारों और कील लगा दी जाती है। खाल मढ़ी तबली के मध्य स्थान पर घोड़ी अथवा ब्रिज रखकर तुम्बे से बाहर निकले दण्ड भाग में खूटी से लपेटे तार को खींचकर बांध दिया जाता है। तार के दबाव से घोड़ी भी तुम्बी पर मजबूती से चिपकी रहती है। इस वाद्य की तार को एक विशेष लय में छोड़कर लोक सन्त गायक आधार निकालने तथा लयताल दोनों का काम एक साथ करते हैं।


    उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि

    हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: फेसबुक पेज उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि

    हमारे YouTube Channel को Subscribe करें: Youtube Channel उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि

    Leave A Comment ?