उत्तराखण्ड के उत्तर मध्य कालीन इतिहास में तराई क्षेत्र में रुहेलों के उत्थान और वहां से कुमाऊँ राज्य पर हुए आक्रमणों के बारे में गजेटियरों तथा कुमाऊँ के इतिहास पर लिखी पुस्तकों में कुछ पृष्ठों के विवरण मिलते हैं। परन्तु जिस तरह से उन्होनें यहां छावनी, चौकी, डेरे, क्षेत्र बनाए और दो वर्ष तक लूटमार, अत्याचार और मन्दिर मूर्तियों का ध्वंस किया, उसका विवरण नहीं मिलता। यहां तक कि रुहेला आक्रमण ( 1742-44 ई.) जो अठारहवीं सदी मध्य में हुआ था, उसके ऊपर गाथाः/लोक गाथा साहित्य में भी कोई खास विवरण नहीं मिलता जबकि मात्र पच्चीस वर्षीय र्गोख्योलयुग की अतिरंजित गाथाएं कुमाऊँ में सर्वत्र मिलती है। इस लेख में हम रुहेलों अभियानों पर एक नई दृष्टि से विचार कर रहे है।
हमारे इस विवेचन का आधार विभिन्न तराई जिलों के गजेटियरों और रुहेलों पर अन्यत्र के विश्वविद्यालयों के शोध प्रबन्धों का विवरण अवश्य है, परन्तु हमने कुमाऊँ के भूगोल और स्थान नामों के देखते हुए उस पर सर्वथा नवीन सामग्री देने का प्रयास किया है।
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1. कुमाऊँ लोकगाथा साहित्य में रुहेले
2. माल तराई याने कटेहर का संक्षिप्त इतिहास
3. रुहेलों का विशेष परिचय
4. रुहेलों के कुमाऊँ अभियान में आए ऐतिहासिक स्थान नाम
5. कुमाऊँ के खान नामान्त स्थान रुहेला आधिपत्य के प्रतीक हैं
लेखक -डॉ. शिवप्रसाद नैथानी
संदर्भ - पुरवासी - 2009, श्री लक्ष्मी भंडार (हुक्का क्लब), अल्मोड़ा, अंक : 30
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