जटामांसी | |
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स्थानीय नाम | मासी, मांसी |
संस्कृत नाम | जटामांसी, मांसी |
हिंदी नाम | जटामांसी, बालछड़ | वनस्पतिक नाम | Nardostachys Jatamansi |
कुल | मांस्यादिवर्ग (Valerianaceae) |
पुष्पकाल | जुलाई-अगस्त |
फलकाल | अगस्त के बाद |
प्रयोज्य अंग | रोमेश मूल (राइजोम) |
प्रयोग | अनिंद्रा, रक्तचाप, सफेद बाल, जीवाणुरोधी |
जटामांसी का पौधा एक फुट लम्बा होता है। इसके पत्ते दो इंच लम्बे होते हैं। जटामांसी के फूल ऊपरी भाग में गुच्छे के रूप में खिलते हैं। ये फूल खिलने पर बैंगनी गुलाबी रंग के होते हैं। इसकी जड रोमश तथा उग्र सुगन्ध वाला होता है।
उत्पत्ति स्थान
जटामांसी ऊँची-ऊँची पहाड़ियों की ढलानों पर 3000 मीटर से 3800 मीटर की ऊँचाई पर प्राप्त होता है।
प्रयोग
मिरगी की बीमारी में इसके मूल का धूपन और भाप देते हैं। अर्श में जटामांसी के मूल चूर्ण को हल्दी के साथ मिलाकर लेप करने से गुदमार्ग के मस्सों से लाभ होता है। फोड़े-फुन्सियों पर इसका लेप लाभकारी होता है। सफेद बालों को काला करने के लिए तथा बालों को लम्बे तथा सुन्दर बनाने के लिए इससे निर्मित तेल से लाभ होता है। रक्तचाप (ब्लडप्रे पर) और अनिद्रा में मूल चूर्ण एवं काढ़ा लाभ करता है। Jatamansi Uses
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