लक्ष्मण सिंह बिष्ट 'बटरोही' | |
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जन्म | अप्रैल 25, 1946 |
जन्म स्थान | ग्राम- छाना, सालम, अल्मोड़ा |
पिता | - |
माता | - |
शिक्षा | डी.फिल., अलाहबाद, एम.ए. हिंदी |
व्यवसाय | लेखक, शिक्षाविद |
भाषा | हिंदी, कुमाऊँनी |
लक्ष्मण सिंह बिष्ट 'बटरोही' (25 अप्रैल, 1946): छाना गाँव, मल्ला सालम, अल्मोड़ा। हिन्दी साहित्य के श्रेष्ठ कथाकार, उपन्यासकार और समीक्षक। प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में पाई। उच्च शिक्षा नैनीताल और इलाहाबाद में पूरी की। इनकी रचनाओं में आंचलिकता का गहरा रंग है। साथ ही मानवीय संवेदनाओं को भी देखा जा सकता है इनकी रचनाओं में। प्रो. लक्ष्मण सिंह बिष्ट 'बटरोही' जी कुमाऊँ विश्वविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष, डीन रह चुके है और महादेवी वर्मा सृजन पीठ, रामगढ़ के संस्थापक और निदेशक भी रह चुके हैं। प्रो. लक्ष्मण सिंह बिष्ट 'बटरोही' तीन वर्ष तक पूर्वी यूरोप के खूबसूरत देश हंगरी में हिंदी का विजिटिंग प्रोफ़ेसर रहे है, वहाँ से ऑस्ट्रिया, जर्मनी, चिकसेरदा, प्राग, फ़िनलैंड, चेक रिपब्लिक तक जाकर भाषण दे चुके हैं।
इनकी आलोचनात्मक पुस्तक कहानीः 'संवाद का तीसरा आयाम'आज की बदली हुई कहानी के नये आयाम पर प्रकाश डालती है। इन्होंने सफल रिपोर्ताज और फीचर भी लिखे हैं। प्रो. लक्ष्मण सिंह बिष्ट 'बटरोही' की लिखित पुस्तकें 'पहाड़ की जड़ें'-2015 और 'गर्भगृह में नैनीताल'- 2013 प्रशिद्ध रचनाएँ है। प्रकाशित रचनाएं: कहानी संग्रह- दिवा स्वप्न, सड़क का भूगोल, अनाथ, मुहल्ले के ठुलदा, हिडिम्बा के गाँव में। उपन्यास- बर्फ, महर ठाकुरों का गाँव, थोकदार किसी की नहीं सुनता। एक लघु उपन्यास संग्रह- आगे के पीछे। आलोचनात्मक पुस्तक- कहानी, रचना प्रक्रिया और स्वरूप तथा कहानी- संवाद का तीसरा आयाम। दो बाल साहित्य एक पुस्तक कुमाउँनी साहित्य और चार पुस्तकें गांधी विचारधारा पर।
वर्ष 2015 में उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री के द्वारा राज्यगीत की रचना को लेकर एक समिति का गठन किया गया था, जिसका अध्यक्ष प्रो. लक्ष्मण सिंह बिष्ट 'बटरोही बनाया गया था। सह-अध्यक्ष के रूप में प्रसिद्ध लोक-गायक नरेंद्रसिंह नेगी को और उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों से इन सुपरिचित साहित्यकारों तथा संस्कृतिकर्मियों को नामित किया गया: हीरासिंह राणा, जहूर आलम, अतुल शर्मा, दिवा भट्ट, नीता कुकरेती, रतनसिंह जौनसारी, अमर खरबंदा और जिया नहटोरी।
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