भ्यूँराज सुरता (जीवनकालः 18वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध): कूर्मान्चल की यह ऐतिहासिक गाथा है जिसका सम्बन्ध कुमाऊँ के चन्द राजा मोहन चन्द (1777-1779) से है। उस समय कुमाऊँ जर्जर और छिन्न-भिन्न हो चुका था। राजा मोहन चंद ने चंद राजाओं के परम्परागत स्वामीभक्त लड़ाकू सामन्तों और सानका का एकत्रित कर कुमाऊँ की गद्दी पर बैठने के जोड़-तोड़ किए। चन्दराज्य के तमाम स्वामीभक्त लड़ाकू वीर परिवारों में खेतीखान के बांज गाँव के 'सया बंजवाल' (देउपा) का परिवार भी था। राजा मोहन चंद ने राज्य की रक्षा के लिए 'सया' बंजवाल को युद्ध में भाग लेने हेतु आमंत्रित किया। दोनों पुत्र भ्यूँराज और सुरता अपने-अपने घोड़े तैयार कर युद्धस्थल को प्रस्थान कर गए। सोलह सौ सिपाहियों का गोलीदार (नायक) बांका भ्यूँराज उत्साह से भरा था। दोनों भाई बिजली की भाँति दुश्मन पर टूट पड़े। सुरता ने भाई को बताया कि मारा-फड़त्यालों (काली कुमाऊँ की दो प्रमुख लड़ाकू जातियाँ) के डेरों में भगदड़ मच गई है। युद्ध करते दोनों भाइयों ने वीरगति प्राप्त की। राजा मोहनचंद स्वयं भ्यूँराज के माता-पिता को सान्त्वना देने उनके गाँव गए और वीरता के पुरस्कार स्वरूप सालम में तीन गाँवों की जागीर दी। कूर्मांचल के इन ऐतिहासिक वीर भाइयों की वीरता को आज भी अत्यन्त आदर भाव से याद किया जाता है।
हमसे वाट्सएप के माध्यम से जुड़े, लिंक पे क्लिक करें: वाट्सएप उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि
हमारे YouTube Channel को Subscribe करें: Youtube Channel उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि