विगत शताब्दि में आयोजित कुमाऊं के थल एवं जौलजीवी के व्यावसायिक लोकोत्सवों के समान ही गढ़वाल मंडल के चमोली जनपद के गोचर नाम स्थान पर एक औद्योगिक/व्यावसायिक मेले का आयोजन होता है, जिसका शुभारम्भ पं. जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन अर्थात् 14 नवम्बर को होता है, जिसमें उत्तरांचल के औद्योगिक, विशेष कर इसके कुटीर उद्योग से सम्बद्ध वस्तुओं का प्रदर्शन एवं क्रय-विक्रय होता है। इसमें गढ़वाल विकास मंडल का अपना विशेष योगदान हुआ करता है। इसके अतिरिक्त इसमें विभिन्न प्रकार के लोकवाद्यों की धुनों पर विभिन्न प्रकार के लोकगीतों तथा लोकनृत्यों के माध्यम से यहां के सांस्कृतिक पक्षों का भी उन्मुक्त प्रदर्शन हुआ करता है।
सन् 1943 में जब यहां के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर मि. बर्नेडी के द्वारा इसका शुभारम्भ किया गया था तो उस समय यहां पर दापा, दीपू, ग्यानिङ एवं थोलिङ् आदि मंडियों के तिब्बती व्यापारी ऊन, सुहागा, कस्तूरी, शिलाजीत, चट्टानी नमक एवं अनेक जड़ी-बूटियों को बेचने के लिए आते थे, किन्तु 1962 में चीन के द्वारा तिब्बत पर अधिकार कर लेने से यह सम्पर्क समाप्त हो गया और इन वस्तुओं का आना भी बंद हो गया।
इसके इस नाम के सम्बन्ध में जनश्रुति है कि पहले यह विशाल मैदान आबाद होता था, किन्तु एक बार बद्रीनाथ की यात्रा से लौटते हुए यहां की रानी के यहां के कृषकों को उनकी भूमि का मनचाहा मूल्य देकर इसे पशुओं के चारागाह के लिए छुड़वा दिया। तभी से यह स्थान गोचर के नाम से जाना जाने लगा। गढ़वाल में गोचर के अतिरिक्त इस प्रकार के मेलों का आयोजन उत्तरकाशी, डुंडा (उ.का.), चोरपानी (ऋषीकेश के निकट) भी हुआ करता है किन्तु इन्हें वह प्रसिद्धि नहीं मिल पायी जो कि गोचर के मेले को मिली है।
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