उनकी बातें भी उनके गीतों जैसी मीठी थी
(नीरज भट्ट, अल्मोड़ा, 9012752406)
साल 2017, महिना सितम्बर, जगह जिला मुख्यालय पिथौरागढ़ से लगभग 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित क्वीतड़ गांव । शाम के लगभग 6 बजे वड्डा की टूटी फूटी सड़कों में भीगते और हिचकोले खाते हुए हम पहुंचे ऐसे घर में जिसमें रहती है वो बुजुर्ग महिला जिनका नाम मैंने पहली बार समूह ग का पेपर देते वक्त एक प्रश्न के बहुविकल्पीय उत्तर में देखा था। उत्तराखण्ड की मशहूर गायिका कपूतरी देवी। मोटर सड़क से लगभग 1 किलोमीटर नीचे गांव के एक तरफ मझेड़ा गधेरा बरसाती पानी के वेग से झूम रहा था। नीचे की ओर कुछ दूरी पर महाकाली नदी पूर्व की तरफ बह रही थी। गांव के अंतिम छोर में 4 कमरों के उस घर में कपूतरी देवी जी से हमारी मुलाकात होती है। लगभग सवा घंटे की बातचीत का कुछ हिस्सा जस का तस प्रस्तुत कर रहे हैं।
कपूतरी देवी- (गीत गाते हुए)
"चले सिया राम लखन वन को
फकीरी कर धारण तन को
राम लखन जब वन को गये थे
अवध पड़ा है सोर
नर नारी सब व्याकुल भये
हाय हाय करे अनघोर
चले सिया राम लखन ........"
अब गाया ही नहीं जाता। गला खराब है। सांस फूल जाती है।
नीरज- बहुत सुंदर यह गीता, अहा -----
मुझे बताइये तबीयत कैसी है ?
कबूतरी देवी- तबीयत बहुत खराब है। छ महिने हो गये खाना नहीं खाया जाता, अब बिना खाने के कैसे बचूंगीं मैं। अब लोग अगर थोड़ा मदद करे तो क्या पता सांसें और खींच जाये। सब कलाकारों को कुछ न कुछ मिला अब मेरा साथ देने वाला भी कोई होता तो मुझे भी कुछ मिलता। ये मेरी बेटी (हेमन्ती देवी) अपनी पारिवारिक जिम्मेदारी निभाये या मेरी जो करे।
नीरज - आप के बच्चे कितने है ? और कहां कहां रहते है?
कबूतरी देवी- तीन हुए। एक बड़ी लड़की हुई फिर लड़का हुआ फिर छोटी बेटी हुई हेमन्ती।
नीरज- लड़का ?
कबूतरी देवी- हां है। वो पहले ही चला गया मुझे छोड़कर शायद बम्बई रहता है बल।
नीरज- अच्छा क्या पवनदीप राजन आपकी बेटी के बेटे है?
कबूतरी देवी- नहीं नहीं ..... वो मेरी बहन का पोता हुआ। उसके साथ हर जगह मेरा नाम जोड़ दिया जाता है। उसकी आमा तो हुई नहीं मैं ही हुई गाने वाली। जब वो 4 साल का था तो मेरे साथ तबला संगत की थी उसने।
नीरज- एक कलाकार का जैसा मन किसी का नहीं होता ना?
कबूतरी देवी- हां सचमुच , किसी का नहीं
जब मैं कहीं गीत प्रस्तुत करने जाती हूं, जब तबीयत सही हो तो। बड़े बुजुर्ग जिनके सिर के बाल सफेद हो गये है। वो पांव छूने लगते है। मुझे शर्म आती है, संकोच होने लगता है। "ऊ कलाकि ढोक हुनि भै....कला का सम्मान हुआ ये..... ऐसा मोह है कला का अब यहां घर की मुर्गी दाल बराबर। यहां मेरी कोई इज्जत ही नहीं हुई। मैं मरने की दहलीज में हूं अब।"
नीरज- अब तो आपकी तबीयत ठीक नहीं रहती, उम्र भी हो गई है लेकिन जब आप गीत गाते थे तो कहां कहां जाते थे, कौन लोगो ने बुलाया? कुछ याद आता है क्या अब?
कबूतरी देवी- हमारे नेता जी मर गये बस फिर कौन कहां ले जाता। बीस बाइस की उम्र तक कहीं नहीं गयी मैं। ये मेरी छोटी बेटी सात वर्ष की थी जब इसके पिताजी का देहांत हुआ उसके आठ नौ वर्ष तक गीत गाने का सवाल ही नहीं। उसके बाद सबसे पहले तल्ला ढिकुरी के कलाकार हेमराज बिष्ट ने एक कार्यक्रम में बुलाया। उन बेचारों ने मेरा नाम थोड़ा आगे को किया उस वक्त। थोड़ी मेरी इज्जत बन गयी वरना मैं कभी के यहीं सड़ जाती। ऐसे ही गीत गाते-गाते अल्मोड़ा में हेमन्त जोशी ने सम्मानित किया। उसके बाद मुझे नैनीताल में एक कार्यक्रम में बुलाया गया। फिर पहले देहरादूर और फिर दिल्ली जाने का मौका भी मिला।
नीरज - ये आज से कितने साल पुरानी बात है?
कबूतरी देवी- होगी करीब पन्द्रह बीस साल पहले की।
नीरज - अच्छा, ये गीत जो आप गाती है किस उम्र से गाना शुरू किया आपने?
कबूतरी देवी- बिल्कुल जबसे होश संभाले तभी से गाती गुनगुनाती थी। हम सब गायक हुए पर कोई कभी सही जगह नहीं पहुंचाा । अब ये नेता जी थोड़ा अक्ल वाले हुए इन्होने ही मुझे आगे किया।
नीरज - नेता जी कौन?
कबूतरी देवी- हंसते शरमाते हुए.... मेरा घरवाला। वो बड़े हरफनमौला व्यक्ति थे। चुनाव भी लड़ा उन्होने।
नीरज - क्या नाम था उनका?
कबूतरी देवी- दीवानी राम, किस्मत नहीं थी साथ। दो बार चुनाव लड़े, नहीं जीत सके।
नीरज - पहाड़ों में उस समय महिलाओं को घर से बाहर निकलकर काम करना लगभग ना के बराबर था। फिर आपके गीत गाने को लेकर दीवानी राम जी की क्या प्रतिक्रिया थी?
कबूतरी देवी- अरे! मेरे पति को बड़ी अक्ल थी। वो हमेशा मुझे आगे बढ़ाने की सोचते थे। जैसे सुरेश राजन ने अपने बेटे पवनदीप राजन को आगे बढ़ाया है। वैसा ही मेरा पति भी सोचते थे। "फिलम में भरती करूंगा तुझे" ऐसा कहते थे लेकिन पहले ही दुनिया छोड़ गये। उनकी मौत के कई साल तक किसी भी कार्यक्रम में नहीं गयी। एक अनजाना डर रहता था मन में। बाद में हेमराज बिष्ट के कारण फिर से गीतों का दौर शुरू किया
नीरज - अच्छा हमने सुना है कि भानुराम सुकोटी जी से आपने गीत गाने सीखे।
कबूतरी देवी- (टोकते हुए) मेरे ककिया ससुर हुए वो। मर गये वो भी अब। लेकिन उनसे मैने सीखा नहीं। मैनें किसी से नहीं सीखा। जो भी सीखा अपने मां बाप से ही सीखा बचपन में। मेरा कोई उस्ताद नहीं रहा। पिता सांरगी बजाते थे और ईजा गाती थी। वही सुनते-सुनते सीख लिया।
नीरज - आपका मायके कहां हुआ?
कबूतरी देवी- मेरा मायके गुमदेश कुमौं, लोहाघाट की तरफ हुआ।
नीरज - क्या नाम था माता और पिता जी का?
कबूतरी देवी- देवराम पिता जी का, देवकी देवी माता जी का। वो सब गाते थे भजन, राग रागिनियां, पहाड़ी गीत। मेरे सब गीत मुझे मेरी ईजा से मिले। आजकल तो मेरे गाये गीत सब गा रहे हैं लेकिन जिस सुर ताल में मैंनें गाये है वो नहीं दिखता।
नीरज - रेडियों में आपके गीत बहुत मशहूर हुए। रेडियो रिकाॅडिंग तक कैसे पहुंचे आप ?
क0 देवी0 - हमारे नेता जी ने सबसे पहले लखनऊ कागज भेजा । मेरा गला अच्छा था पास हो गई मैं । फिर मुझे नजीबाबाद आकाशवाणी भेजा गया। जहां छ सात गीतों की रिकाॅडिंग की मैने। उसके बाद चर्चगेट बम्बई आकाशवाणी में भी मैनें गीत गाये।
नीरज - रेडियों में पहली बार गाकर कैसा लगा आपको?
क0 देवी0 - बहुत अच्छा लगा.....
उस वक्त उमर भी थी गला भी था। सब लोग सुनकर खुश हो जाने वाले ठहरे। वहां लड़के लड़कियां बहुत अच्छा व्यवहार करते, कोई कुछ लाता कोई कुछ । मैं तो संकोच में रहा करती , अपने पति से कहती ये लाटी है लाटी । इतनी शर्मिली थी मैं ।
हमारा वक्त ऐसा था। आज तो सब बदल गया है।
नीरज- रेडियों में जो पहला गीत आपने गाया वो थोड़ा सुना दीजिए ।
क0 देवी0 - एक ही लाइन सुना पाउंगी , अंतरा याद नहीं आ रहा। इस गीत को रिकाॅर्ड करते हुए तुम जैसे लड़के वहां सिखाते थे ऐसे गाओ, यहां अलाप लगाओ, दीदी कहने वाले हुए।
‘‘ मैंस दुख कोई जाना न
डरन डरन डरना
सासू ब्वारी भात खानी
मैं तौली चाटनी
देवरानी जेठानी मेरी काटनी
मेरी छ काटनी हो ईजू मेरी छ काटनी...... ’’
ये नवविवाहित लड़की के दुख का गीत है। मेरे पति ने बनाया ठैरा ये गीत। 2000 रूपये मिले मुझे उस टाइम वो आज के 10000 बराबर थे। तब यहां से लखनऊ का किराया 16 रूपये था और 100 रूपये में बम्बई गये थे हम। अब आजकल तो पूछो ही नहीं अब ।
नीरज - आजकल कोई बच्चे संगीत आपसे सीखने आते है क्या ?
क0 देवी0 - यहां कौन आएगा इस गधेरे में । हां, वहां बेटी हेमन्ती के घर थी तो उन्होने एक कलाकेन्द्र खोला था। बीमार हो गई वहां वापस आगई।
नीरज - राज्य सरकार तमाम दावे करती है कि लोक कलाकारो के लिए अलग अलग योजनाएं है। ऐसी कोई जानकारी है आपको?
क0 देवी0 - कुछ भी जानकारी नहीं मुझे। हजार रूपये पेंशन मिलते है बस। बिमारी के वक्त लोगों ने सौ पचास रूपये की खूब मदद की ।
नीरज - आजकल तो आपकी नातिन है आपके साथ। जब अकेले होते हो तो कैसे करते हो घर का सारा काम ?
क0 देवी0 - कहां कर पाती हूं, कुछ नहीं कर पाती। आटा नहीं गूंथ सकती, बर्तन नहीं उठा सकती। अकेले नहीं रहूंगी वहीं जाउंगी हेमन्ती के साथ।
नीरज - अच्छा , चैती गीत सुना दीजिए हो सके तो।
क0 देवी0 - बरस दिन को पैल म्हैणा
आयो इजू भिटोलियो म्हैणा.......
चैत में भाई बहन के प्यार का गीत हुआ ये।
नीरज - सांसों में इतनी दिक्कत है आपको लेकिन फिर भी आप गीत गा ही लेती है।
क0 देवी0 - हां कलाकार का मन हुआ ये क्या करूं इस मन का। किसी को गाते हुए देखती हूं तो गुनगुनाने लगती हूं।
नीरज - ये हारमोनियम कितनी पुरानी है?
क0 देवी0 - इसको हो गये होगें 40 - 45 साल। किसी युवा गायक को उसके उस्ताद ने ईनाम दी थी। उसने मुझे भेंट की ये हारमोनियम। अभी बारिश के मौसम के बाद गीत गाने जाउंगी नैनीताल।
नीरज - अच्छा आपकी उम्र कितनी होगी ?
क0 देवी0 - 50 - 55 के तो मेरे बच्चे हो गये। मेरी होगी यही 70-72
नीरज - न्योली तो एक परिवेश का गीत हुआ। क्या आज भी गांव में महिलाएं गाती है न्योली ?
क0 देवी0 - हां हां गाती है आज भी पुरानी महिलाएं। जंगलों का गीत हुआ ये। न्योली गाने में लम्बी सांस लगती है। मैं नहीं गा पाती अब।
नीरज - अच्छा सरकार में कोई संवेदनशील आदमी इस बातचीत को सुन रहा हो तो आप क्या कहना चाहेंगी सरकार से ?
क0 देवी0 - मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस सड़क में एक कमरा बनवा दो। जहां मुझे चलना ना पड़े। यहां इतने नीचे घर है सड़क से पीठ में बाथ का दर्द है चढ़ी नहीं जाती अब ये चढ़ाई। सरकारी आदमी यहां सिलेण्डर भी पहुंचा गया है लेकिन अकेली पड़ गई हूं मैं अब। हेमन्ती ही है एक साथ अब।
नीरज - अंत में एक ऐसा गीत सुनने की गुस्ताखी कर रहा हूं जो आपको हमेशा याद आता है।
क0 देवी0 - ( होई होई किलै ना कहते और खांसते हुए )
‘‘ पहाड़ो ठण्डो पाँणी
सुण कतु मीठी बाणी
छोणनी नै लागनी
पहाड़ो .................
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