जौव मिट्टी के ढेलों को तोड़ने व खेत को सपाट करने के काम में आता है। जौव 38 इंच लम्बा, 4 इंच चौड़ा व मध्य में 2½ इंच गहरा कटा हुआ होता है जिसका निचला सिरा सपाट व ऊपरी भाग के मध्य में 22 इंच की दूरी तक लगभग 1½ इंच गहरा होता है। इस प्रकार इसके दोनों बाहरी सिरे उठे हुए होते हैं।
जौव के मध्य में 2½ इंच गहरे कटे हुए भाग में पांचरों की मदद से लाठा फंसाया जाता है। लाठे के ऊपरी भाग से कुछ दूरी पर किलणी लगी होती है जिसका सम्बन्ध जुवे से कर दिया जाता है।
जौव के पास ही लाठे पर एक रस्सी बंधी होती है। इसी रस्सी के सहारे खेत की मिट्टी भुरभुरी व सपाट करते हुए हल्का व भारी हाथों से जोव लगाया जाता है। तुन की लकड़ी जो हल्की होती है की पवित्रता स्वरूप जोव बनाने के लिए प्राय: चीड़ की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है, जो आसपास के जंगलों में आसानी से उपलब्ध हो जाती है। चीड़ की लकड़ी के अलावा बांज इत्यादि की लकड़ी भी जोव बनाने में प्रयुक्त होती है और इसे बनाने में लगभग दो सौ रुपये का खर्चा आता है जिसे स्थानीय काश्तकार एक दिन में तैयार कर लेते हैं। तुन की लकड़ी में पैर रखने की मनाही होती है।
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