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    महासू देवता

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    महासू देवता जौनसार - बावर व हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों के इष्टदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। वे यहां न्याय के देवता माने जाते हैं तथा इनके मंदिर को न्यायालय के रूप में माना जाता हैं। महासू देवता चार देव भाई हैं जिनके नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बौठा महासू, व चालदा महासू हैं। महासू शब्द ‘ महाशिव ‘ का अपभ्रंश हैं। जौनसार - बावर के हनोल में चारों महासू भाइयों का मुख्य मंदिर है। महासू देवताओं के अतिरिक्त यहां इनके चार वीर - कपला, कैलथा, कैलू और शेर कुड़िया की मूर्ति भी स्थापित है। इस मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी का माना जाता है। हनोल के अतिरिक्त जौनसार - बावर के अन्य क्षेत्र, रंवाईं परगना, हिमाचल प्रदेश के सिरमौर, सोलन, शिमला आदि क्षेत्रों में महासू देवता को पूजा जाता है।


    टोंस नदी के बांयें तट पर हनोल में चारों महासू देवता भाइयों का मुख्य मंदिर है। इस मंदिर में मुख्य रूप से बौठा (बूठिया) महासू की पूजा होती हैं । टोंस नदी के दायें तट हनोल से 3 किमी0 दूर बंगाण क्षेत्र के ठडियार गांव जो कि उत्तरकाशी जनपद में आता है, में पबासिक महासू की पूजा होती है। हनोल से 10 किमी0 दूर मैन्द्रथ नामक स्थान पर बासिक महासू की पूजा होती है। चालदा महासू जो कि चारों भाइयों में सबसे छोटे भाई हैं उन्हें भ्रमणीय देवता कहा जाता है जो कि 12 वर्ष तक उत्तरकाशी और 12 वर्ष तक देहरादून जिले में भ्रमण करते हैं। इन जनपदों के अलग अलग क्षेत्रों बिशोई, हाजा, कोटी कनासर, मशक, उदपाल्टा, मौना आदि स्थानों पर इन वर्षों में इनकी उपासना होती है।(Mahasu devta temple)


    पौराणिक कथा के अनुसार इस क्षेत्र में किरमिक नामक राक्षस का बहुत आतंक था। राक्षस से छुटकारा दिलाने हेतु हुण भाट ने भगवान शिव और पार्वती की तपस्या की तथा उनसे इस राक्षस से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना की तब शिव और पार्वती ने चार भाई महासू की उत्पत्ति की। महासू भाइयों ने राक्षस का वध करके राक्षस से क्षेत्रवासियों को मुक्ति दिलाई। तब से वहां के लोगों ने महासू देवता को अपना आराध्य माना।(Mahasu devta temple, Uttarakhand Himachal pradesh)



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