ऐड़ी भी ग्वेले की भांति कूर्मांचल का लोकप्रिय देवता है। लोक विश्वास है कि वह प्रतिदिन रात्रि में अपने क्षेत्र का भ्रमण करता है और उसे सब प्रकार की दैहिक, दैविक और भौतिक आपदाओं से मुक्त करता है। ऐड़ी से सम्बन्धित यहां दो तरह की लोक कथाएं सुनी जाती हैं। एटकिन्सन ने भी ऐड़ी का उल्लेख किया है। यह भयंकर आकृति प्रतिकारक स्वभाव वाला वन देवता माना जाता है। चार भुजाओं, धनुषबाण, लौहदण्ड और त्रिशूल युक्त है। जागर के अनुसार ऐड़ी का रूप नितान्त भिन्न है। वह हटी, अल्हड़ और आखेट प्रेमी है। ये सभी बातें विश्वास से परे और अतिशयोक्तिपूर्ण हैं। ऐड़ी कत्यूरी काल में अवश्य कोई भड़, योद्धा या सिद्ध पुरुष रहा होगा। एक अन्य कथा के अनुसार ऐड़ी का वास ब्यानधुरा (नैनीताल) के उच्च शैल शिखर पर था। कलुआ कसाई और तुआ पठान की सहायता से पठानों को इस मंडप का भेद मिल गया और वे सोलह सौ सैनिकों को लेकर यहां आ गए। गुरु गोरखनाथ ने स्वप्न में ऐड़ी को घटना की सूचना दी। ऐड़ी ने जागकर गोरिलचौड़ से अपने वीर गोरिया को बुलाया। गोरिया ने अपने बावन वीरों के साथ पठानों को वहां से मार भगाया।
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