KnowledgeBase


    भगवान सिंह धामी - विद्यार्थियों के ज्ञानतीर्थ

    Bhagwan Singh Dhami

    भगवान सिंह धामी

    जन्म12 मई, 1991
    जन्म स्थानग्राम- स्यांकुरी, धारचूला (पिथौरागढ़)
    मातास्व. विशमती देवी
    पिताश्री दलीप सिंह धामी
    शिक्षाएम. ए. राजनीति शास्त्र एवं इतिहास, बीएड

    हर किसी का जीवन उसके लिए पृथक व अनूठा होता है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का अपना एक वृतांत है, जिंदगी का यह सफर जितना सुहाना है उतने ही इस सफर के वे बेगाने संघर्ष जो वास्तविक रूप में जीवन को जीना सिखलाते हैं। जीवन स्वयं में एक अवसर है, जिसका हर किसी से एक साधारण सा नाता है किंतु यह मानव के हाथ में है कि वह कैसे इस जीवन रूपी सागर से अपने असाधारण संबंध को जोड़े। अधिकांशो का जीवन तो जमाने को बनाने और जानने में ही व्यतीत हो जाता है, किंतु कुछ उस दीपक की प्रभा की भांति ऐसी शख्सियत भी होती हैं जो जमाने को ही अपने दौर में तब्दील कर देती हैं। ऐसा ही एक सामान्य व्यक्तित्व का असाधारण जीवन मेरे इस लेख के अल्फाजों में पसरा हुआ है, जी हां साथियों आज बात पहाड़ के एक ऐसे किरदार की, जिन्होंने पहाड़ की पथरीली पगडंडियों से उभर कर, गांव की उस माटी की सौंधी सुगंध को लेकर, युवाओं में प्रेरणा के एक सृजन स्रोत के रूप में कार्य कर उनमें मंजिल की अभिलाषा को जगाई है व उनके सपनों के पंखों में बुलंदियों की उड़ान को भरी है। जी हां आज बात शिक्षा के आजीवन साधक व ज्ञान तीर्थ भगवान सिंह धामी जी की, जो राज्य के हर विद्यार्थी के लिए एक ऐसा परिचित चेहरा बन चुके हैं, जिसकी कल्पना शायद कभी उन्हें भी न थी। विशेष रुप से आज पहाड़ के उन सुदूरवर्ती क्षेत्रों के विद्यार्थियों के लिए भगवान धामी ज्ञान के किसी तीर्थ से कम नहीं जिन ग्रामीण अंचलों में शिक्षा का स्तर आज तक भी दुरुस्त नहीं हो पाया है।


    मेहनतकश पहाड़ की ग्रामीण पृष्ठभूमि से भगवान धामी का प्रारंभिक सफर!...


    कहते हैं कि "गुरु अनंत गुरु कथा अनंता" गुरु की महिमा का तो जितना भी वर्णन किया जाए वह कम ही कम है। प्राचीन काल से ही भारत वर्ष कि इस धरा पर गुरु शिष्यों की फसल लहलहा रही है। गुरु तो साक्षात ज्ञान के प्रकाश का वह पुंज है, एक ऐसा गुर है जिन्होंने विद्या को लय से लयबद्ध किया है। शिष्य के आत्मज्ञान की चेतना के लिए गुरु ही वह सेतु है, जिस पर चलकर शिष्य सार्थकता के शिखर को छूता है।


    ऐसे ही गुरु मूरत भगवान धामी जी को साहित्य की सुर्खियों में लाना मेरे लिए इतना आसां नहीं, धामी जी के वर्षों की ज्ञान साधना को वर्णित करने के लिए मेरे साहित्य सरोवर में शब्दों की मोतियों का अभाव अवश्य है, किंतु उनके व्यक्तित्व व कृतित्व की व्याख्या के लिए मनोभाव के स्फुलित ज्वार को रोकना भी मेरे लिए असंभव होगा। यूं तो धारचूला (पिथौरागढ़) के स्यांकुरी गांव में जन्मे भगवान धामी किसी परिचय के मोहताज नहीं है, किंतु उनके कृतित्व की विवेचना को एक प्रेरणा के रूप में समाज के हर जन जन तक पहुंचाना आवश्यक हो जाता है। मूल रूप से किसान परिवार में जन्मे भगवान धामी जी के बचपन का अधिकांश समय संसाधनों के विकट अभाव में ही व्यतीत हुआ। उनके पिता श्री दलीप धामी जी ने गांव में ही कृषि कर अपने 5 बच्चों का लालन-पालन किया। बाल्यकाल से ही भगवान काफी प्रतिभाशाली छात्र रहे स्कूली पढ़ाई के साथ-साथ प्रेरणा के प्रसंगों व पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने में उनकी विशेष रूचि रही, किंतु जीवन के इम्तिहान भगवान धामी के लिए इतने आसान भी नहीं थे। पहाड़ों में सदैव से ही आर्थिकी के संसाधनों की कमी रही है और आर्थिक संकट के इस साये को कहीं ना कहीं भगवान धामी ने भी बखूबी झेला है। किंतु कभी भी आर्थिकी को वजह बनाकर उन्होंने अपनी बुलंदियों के घुटनों को नहीं टेका और पांच भाई बहनों के बड़े संयुक्त परिवार से उठकर स्वयं को साबित किया। अपने बड़े भाई पान सिंह धामी जी जो कि उनके गांव स्यांकुरी से B.Ed करने वाले प्रथम व्यक्ति भी है, को वह अपने प्रेरणा का स्रोत मानते हैं। अपनी मेहनत व लगन से गांव के ही सरकारी विद्यालय से भगवान ने दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की।


    वह बताते हैं कि आज भी उनका गांव नेटवर्क, स्वास्थ्य जैसी तमाम भौतिक सुख सुविधाओं के अभाव से ग्रसित है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भगवान धामी ने किन जटिल परिस्थितियों में अपनी स्कूली शिक्षा को ग्रहण किया होगा। मैट्रिक करने के उपरांत भगवान सिंह की बड़ी बहन जानकी व जीजा जी वीर सिंह ने उनके पढ़ने की अग्रिम जिम्मेदारी लेकर उनके भविष्य के मार्ग को प्रशस्त किया। जिसका अनुसरण भगवान ने भी अपनी पूर्ण तन्मयता के साथ किया और निरंतर दीदी जीजा के मार्गदर्शन में अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखी।


    फर्श से अर्श तक का सफर ऐसे किया तय!


    Book written by Bhagwan Singh Dhami

    भगवान सिंह संघर्षों की घनघोर परिस्थितियों के आगे कभी हताश नहीं हुए और ना ही झुके। बालमन से ही सपनों की उपज उनके रग- रग में जड़ें जमाए हुई थी।जो नाकामी और उपलब्धि के भयंकर दौर में कभी खिलखिला और कभी मुरझा रही थी।


    2009 में 12वीं की परीक्षा पास करते ही रोजगार जुटाने के लिए उन्होंने अपने प्रयास शुरू कर दिए, सेवायोजन कार्यालय द्वारा आयोजित रोजगार मेले के माध्यम से उनका चयन एक सुरक्षा कंपनी में हुआ। जिसकी कुछ खुशी उन्हें अवश्य थी । देहरादून सेलाकुई के निकट राजवाला के जंगल में उनका वह ट्रेनिंग सेंटर था जहां से मात्र 4 दिनों में ही 6000रु जमा न कर सकने के कारण उन्हें निष्कासित कर दिया गया। सपनों के बिखरने का अनुभव तो भगवान को बचपन से ही था। सो एक रुआंसा मन लेकर उन्होंने घर की ओर अपने कदम बढ़ाए, जेब में शेष कुछ पैसे और एक बैग जिसमें भी उन्हें संशय था कि किराया पूरा होगा या नहीं। लेकिन जैसे कैसे आखिर घर पहुँच ही गए। फिर कामयाबी के लिए दूसरा दौर शुरू हुआ वर्ष 2010 में, अब उन्होंने अपना रुख सिडकुल की ओर किया और पहुंच गए रुद्रपुर। सिडकुल की पहली नौकरी उन्होंने "नेस्ले" कंपनी में शुरू की और काम था मैगी पैकिंग। 8 घंटे रोज कंपनी को देने के बाद, तनख्वा मात्र 3900रु, यहां भी 15-16 दिन काम करने के बाद 2100 रु तनख्वा लेकर उन्होंने नौकरी छोड़ दी, और पकड़ ली सुरक्षा गार्ड की दूसरी नौकरी 5000रु तनख्वाह और 12 घंटे ड्यूटी। किंतु तकदीर में कुछ और ही लिखा था 2011 में गृह वापसी की योजना बनाकर 2012 में स्नातक की पढ़ाई पूरी की और, 2013 के शुरुआत से ही एक नई पारी के रूप अपना ध्यान पढ़ाई की ओर केंद्रित किया और जुट गए। इसके ही एक साल बाद शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने का सिलसिला भी उन्होंने आरंभ किया, इसी वर्ष 2015 में हाईकोर्ट क्लेरिकल की परीक्षा भी पास की, किंतु इस दौरान निर्धन छात्रों के लिए उनके द्वारा निशुल्क कोचिंग भी दी जा रही थी। इसलिए भगवान ने इस नौकरी का परित्याग कर दिया। एक बार पुनः जुलाई 2015 में ग्रुप सी की परीक्षा उन्होंने पास की लेकिन छात्रों की जिम्मेदारी को ध्यान में रखते हुए, यह दूसरी नौकरी भी ठुकरा दी। वर्ष 2016 में तीसरी बार उनका चयन राज्य की सरकारी सेवा में हुआ और अंततः इस अवसर को उन्होंने स्वीकार किया। वर्तमान में भगवान सिंह धामी जी उत्तराखंड राज्य सचिवालय देहरादून में कार्यरत है।


    जिज्ञासाओं के धाम है धामी जी!


    "हम तो सरे राह लिए बैठे हैं चिंगारी
    कोई भी आए और चिरागों को जलाकर ले जाए"


    यह पंक्तियां भगवान धामी पर बिल्कुल सटीक ही बैठती है। जिन्होंने छात्र जिज्ञासाओं को अपने ज्ञान के प्रकर्ष से गति व स्थिरता प्रदान की है। आज हर वह छात्र भगवान सिंह से संपर्क साधना चाहता है, जिसके मन में अपनी शिक्षा, भविष्य या किसी ऐसे प्रश्न को लेकर शंका है जिसका जिक्र कम ही पुस्तकों में मिलता है। विशेषकर पहाड़ों में रहने वाले वे विद्यार्थी सोशल मीडिया के डिजिटल माध्यमों से भगवान धामी के काफी करीब है। जिनके पास तैयारी के लिए कोचिंग का कोई ठोस माध्यम नहीं है।


    Book written by Bhagwan Singh Dhami

    भगवान धामी ने स्वयं एक विद्यार्थी के रूप में यह तमाम परिस्थितियां झेली हुई है, इसलिए एक मार्गदर्शक के रुप में उनकी पूरी कोशिश रहती है कि कोई भी छात्र शिक्षा के किसी संसाधन से वंचित ना हो, शायद ही राज्य में आज कोई ऐसा प्रतियोगी छात्र हो जिसके पास धामी सर के प्रतियोगी नोट्स उपलब्ध ना हो। तैयारी में जुटे हर छात्र को शिक्षण सामग्री के एक सूत्र में बांधने की उन्होंने पूरी कोशिश की है।


    छात्रों को समसामयिक जैसे तमाम मुद्दों से जोड़ने के लिए वर्ष 2019 में उत्तराखंड ज्ञानकोष नाम से उन्होंने एक फेसबुक पेज भी बनाया, जिसे कुछ समय बाद "उत्तराखंड ज्ञानकोष यूकेपीडिया" का उन्होंने नाम दिया। वर्तमान समय में लगभग 12000 लोग उनके इस पेज से जुड़े हुए हैं।


    भगवान ने "उत्तराखंड ज्ञानकोष जनपद दर्पण" व "यूकेपीडिया" नाम से दो पुस्तकें भी लिखी है। जनपद दर्पण का पहला भाग 2019 तथा दूसरा भाग 2020 में उन्होंने प्रकाशित किया जबकि यूकेपीडिया पुस्तक उनके द्वारा हाल ही में लिखी गई है। जिसका विमोचन उन्होंने फरवरी 2021 में किया।


    ज्ञानकोष पेज पर आरंभ की सफलता/ प्रेरणा संवाद की एक अनोखी लाइव पहल !


    सोशल मीडिया के माध्यम से शिक्षा को एक नया आयाम देकर छात्रों को ज्ञान की दिशा से जोड़ने में भगवान धामी जी ने अपने कई गंभीर प्रयास आरंभ किए, जून 2020 के लॉकडाउन के दौरान जब राज्य के सभी कोचिंग शिक्षण संस्थान पूर्ण रुप से बंद हो गए।ऐसे में धामी को महसूस हुआ कि छात्रों की पढ़ाई अप्रत्यक्ष रूप से कहीं ना कहीं बाधित हो रही है व छात्र स्थिति को लेकर काफी निराश है। इन सारी बातों को संज्ञान में लेते हुए भगवान धामी ने राज्य स्तर के तमाम कोचिंग संचालकों, शिक्षकों, सफल विद्यार्थियों, शोधार्थियों, लेखकों, साहित्यकारों को अपने ज्ञानकोष पेज पर लाइव आमंत्रित कर सफलता /प्रेरणा संवाद की सीरीज के जरिए छात्रों के मार्गदर्शन का बीड़ा उठाया।


    व्हाट्सएप के जरिए छात्रों के मोबाइल में धामी सर की एंट्री!


    छात्र के भविष्य हित को सदैव मध्य नजर रखते हुए भगवान धामी ने अपना व्यक्तिगत व्हाट्सएप नंबर तक सार्वजनिक कर दिया। छात्र न केवल व्हाट्सएप पर संदेश के द्वारा, बल्कि फोन पर उन्हें संपर्क कर, उनसे बातचीत के माध्यम से भी तमाम विषय/ प्रश्न संबंधी दुविधा को दूर करते है।


    वास्तव में छात्रों के प्रति धामी सर की इस प्रकार की समर्पित पहल अभिनव व अनुकरणीय है। विद्यार्थियों की दशा और दिशा को बदलने का जो उन्होंने बीड़ा उठाया है। वह एक बड़े स्तर पर आज साकार भी है, उनके द्वारा पढ़ाएं गए तमाम छात्र आज राज्य व केंद्र सरकार की तमाम बड़ी सेवाओं में विराजमान है।


    Ashok joshi

    लेखक

    नाम - अशोक जोशी
    पता - नारायण बगड़ चमोली


    हमसे वाट्सएप के माध्यम से जुड़े, लिंक पे क्लिक करें: वाट्सएप उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि

    हमारे YouTube Channel को Subscribe करें: Youtube Channel उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि

    Leave A Comment ?