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    झालीमाली - लोक देवी

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    उत्तराखण्ड में देवी भगवतीदुर्गा के नौ रूपों के अतिरिक्त अन्य अनेकों स्थानीय रूप हैं। इसमें नन्दा, राजराजेश्वरी, चन्द्रबदनी, सुरकण्डा, भ्रामरी, मठियाणा, कुंजापुरी, धारीदेवी, ज्वालपा, भराड़ी, गढ़देवी, कंसमर्दिनी, पाताल भुवनेश्वरी, अनुसूया, झूलादेवी, भद्रकाली, कालीमठ, बाराही आदि हैं। जन सामान्य में इनको लोक मातृदेवी कहा जाता है, जिन्हें विभिन्न जाति/समुदायों में कुल/इष्ट देवी की उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। झालीमाली भी इन्हीं लोकदेवियों में शामिल है।


    झालीमाली का परिचय

    झालीमाली का अर्थ है-सुन्दर, सजी-धजी दिखने वाली देवी। झालीमाली शब्द झालमाल से बना है, जिसका भाव है अपने कुटुम्ब के साथ फलाफूला समाज। झालीमाली संम्पूर्णता का प्रतीक है। झालीमाली का आदि संबध मां बाला त्रिपुरा सुन्दरी से भी माना जाता है। त्रिपुरा सुंदरी ही गढ़वाल में झालीमाली देवी हैं। (ग्रामवासी-2012)। तिब्बत में हूणों की इष्टदेवी से भी झालीमाली को जोड़ा जाता है। हूण देश में झालीमाली को पशुओं की रक्षा करने वाली देवी माना गया है। झालीमाली अग्नि की देवी मानी जाती है। संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र में अग्नि देवता के बजाय लोकदेवी के रूप में प्रतिष्ठित हुई और वह झालीमाली, ज्वालपा और ज्वाला आदि नामों से ख्यात हुई। (गोविन्द चातक-1990)। प्राचीन काल में झालीमाली की ज्योति को अन्य पवित्र स्थलों पर ले जाने की परम्परा थी। अग्नि की देवी झालीमाली का मूल स्थान फुंगल (चम्पावत) में है। प्राचीनकाल में वहां झालीमाली देवी को एक ज्योत के रूप में पूजा जाता था।


    उत्तराखण्ड में नन्दा, भ्रामरी, बाराही, भीमा, बालासुन्दरी, ज्वालपा, ज्वाला, शाकम्बरी का आदि रूप ही झालीमाली है। झालीमाली देवी के बारे में कहा जाता है कि वह अपने भक्तों को आने वाले अपशगुन/कष्टों से स्‍वप्‍न में आकर आगाह कर देती हैं। ताकि उसके भक्त सचेत हो जाय। रणूरौत, सदेई, भीमा कठैत, जियाराणी की ऐतिहासिक कथाओं में झालीमाली देवी ने इसी रूप में अपने भक्तों की मदद की थी। इसीलिए मां झालीमाली को स्वप्न की देवी भी माना जाता है। सर्वगुण सम्पन्न वर की कामना के लिए अविवाहित युवतियों द्वारा झालीमाली को विशेष रूप में पूजने की प्रथा भी है। 'समवयस्क और सुन्दर पति प्राप्त करने के लिए किशोरियां ज्वालपा, ज्वाला और झालीमाली देवी की पूजा करती हैं।' सुयोग्य संतान की प्राप्ति के लिए भी झालीमाली, ज्वालपा और ज्वाला का स्मरण विशेष फलदायी माना गया है (गोविन्द चातक-1990)। उत्तराखण्ड में किन्हीं विशेष स्थानों में बोरा, नैनवाल, तड़ियाल, सती, खुगशाल, मंमगाई, कैंतुरा, कुकरेती, गुसांई, जोशी, रावत, पयाल, पुजारी, महर आदि की कुलदेवी झालीमाली देवी है।


    इतिहासविदों का मानना है कि उत्तराखण्ड के प्राचीन शासक सूर्यवंशी कत्यूरी (कैंतुरा), काली कुमायूं के महर एवं रौत राजाओं की कुल देवी झालीमाली ही थी, जिसे बाद में नन्दा कहा जाने लगा। कोट भ्रामरी एवं बाराही देवी झालीमाली के ही विशिष्ट रूप हैं। यह सर्वविदित है कि कत्यूरी शासकों ने अपनी राजधानी जोशीमठ से बैजनाथ में स्थानान्तरित/स्थापित करने के दौरान बैजनाथ के डंगोली क्षेत्र के झालामाली गांव में मां झालीमाली मन्दिर को प्रतिष्ठापित किया। यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही झालीमाली क्षेत्र के रूप में लोकमानस में विद्यमान है। कहा जाता है कि कत्यूरी शासकों की प्राचीन राजधानी जोशीमठ का अन्तिम कत्यूरी राजा असंतीदेव था। अपना राज नृसिंह जोगी को अर्पित करके असंतीदेव (असंदी देव) चुनिंदा प्रजा और सेना के साथ अपनी कुलदेवी झालीमाली के पथप्रर्दशन में पीछे-पीछे चलते हुए कुमायूं क्षेत्र के बैजनाथ स्थान में पंहुचे थे। (कुमायूं की लोकगाथाएं-डॉ. प्रयाग जोशी)। यहीं पर अरुण नामक राक्षस का देवी ने भ्रमर का रूप धारण करके बध किया। इसीलिए बाद में झालीमाली को भ्रामरी देवी कहा जाने लगा। आज इस इलाके में झालीमाली का भ्रामरी नाम ही लोक प्रचनल में है। मां भ्रामरी का मन्दिर वर्तमान में झालामाली गांव के ऊपर पहाड़ी की चोटी में एक प्राचीन किले के अन्दर विराजमान है। इतिहासविद डॉ. शिवप्रसाद नैथानी ने कत्यूर घाटी को झालीमाली का क्षेत्र माना है। डॉ. नैथानी रणजूली देवी/भ्रामरी देवी को झालीमाली मानते हैं।


    बैजनाथ से रणचुलाकोट में भ्रामरी देवी के मंदिर को जाने वाले पैदल मार्ग और बैराट में लखनपुर हाट के झाला में झालीमाली देवी के मंदिर का अस्तित्व वर्तमान में भी विद्यमान है (राजुला-मालूशाही प्रेम गाथा-डॉ. एस.एस. पांगती)। बैजनाथ के डंगोली क्षेत्र को झालीमाली मानने का जिक्र कई लोक कथाओं, गाथाओं एवं गीतों में आया है। जोहार के एक लोकगीत में तिब्बत से नमक, सोहागा और ऊन लाकर कत्यूर ले जाने और वहां से बारह बीसी ढाकर में जौ लादकर तिब्बत पहुंचाने के दौरान वरदायिनी झालीमाली देवी का सुन्दर वर्णन किया गया है। जोहारी लोकगीत की पक्तियां इस प्रकार हैं- 'कत्यूर रैनी-सैनी तोली, यो स्‍येरी को देवी बैठली, कत्यूर रैनी-सैनी तोली, बैठली झालीमाली देवी, कत्यूर झालीमाली देवी, त्‍वी देवी ह्यवे वरदैणी'। भावार्थ यह है-'कत्यूर की इस लम्बी-चौड़ी चौरास भूमि पर कौन देवी रहती है ? कत्यूर की इस लम्बी-चौड़ी चौरास भूमि पर झालीमाली देवी रहती है। कत्यूर की झालीमाली देवी, तू सबके लिए वरदायनी हो जाय।' इसी प्रकार एक मारछा लोकगीत में भक्त द्वारा घण्टाकर्ण देवता के भोग के लिए कत्यूर बाजार से 'बासमती चावल' लाने का और झालीमाली मन्दिर में रात्रि विश्राम का जिक्र इस प्रकार है। 'ए पौचें मैं अब कत्यूरना को हाट, कत्यूरना को हाट छोड़ोलो पयांणों,ए पौचें में झालीमाली देवी ना को हाट, झालीमाली देवी ना को हाट छोड़ोंलो पयांणों, कत्यूर ना को हाट रींगी वासा सांटे मैं न धेनू वालों लौंण, सांटे में न झीरि-बासमती चौल, पॉजलों में अब ऑखि वालों फॉचों। भावार्थ यह है-'मैं कत्यूर हाट पहुंचूंगा, वहा झालीमाली के मन्दिर जाऊँगा, वहीं रात बिताऊंगा। आपसी अदला-बदली से कत्यूर बाजार में नमक और खुशुबूदार बासमती लूँगा, कत्यूर हाट से वापस मैं माणा बाजार पहुँचुंगा, तब मैं घण्टाकर्ण को भोग लगाऊंगा'।


    कत्यूरी शासन में झालीमाली


    उत्तराखण्ड में कत्यूरी युग 7वीं से 12वीं सदी तक माना जाता है। कत्यूरी राजाओं की प्राचीन राजधानी जोशीमठ थी। जोशीमठ के बाद कत्यूरी प्रशासकों की प्रधान राजधानी रणचूलाकोट (बैजनाथ) थी। वर्तमान बागेश्वर जनपद के गोमती और सरयू नदियों के मध्य बैजनाथ के मन्दिर समूह की भूमि कत्यूर के नाम से प्रसिद्ध रही है। इस क्षेत्र में रणचूलाकोट, सेलीहाट, गढ़सेर और झालामाली में कत्यूरों की प्राचीन राजधानी कार्तिकेयपुर के अवशेष अभी भी मौजूद हैं। बागेश्वर में एक बाजार का नाम कत्यूर बाजार है (चन्द्र सिंह चौहान एवं मदन चन्द्र भटट-2004)। कत्यूरी और चन्द राजाओं के समय चम्पावत में 'झालीमाली' देवी की पूजा के रूप में 'श्रावण मास'की प्रतिपदा को हरेले के बाद बग्वाल का खेल आयोजित किया जाता था। बोरा, कार्की, चौधरी, और तड़ागी की चार आलें झालीमाली देवी की परिक्रमा के बाद ढोल-नगाड़ों के साथ 'कटकु' (सेना के गीत) और 'भड़ौ' गाती गोरिलचौड़ नामक मैदान में एकत्र होती थींं तथा 'ख्यूँतार' एवं 'गुलेल' से एक-दूसरे पर पत्थरों की वर्षा करती थीं। उस पत्थर वर्षा में जो आल ज्यादा घायल होने लगती, वह मैदान से हट जाती थी। विजयी आल को राजा द्वारा उस वर्ष 'चाराल' (बोरा, कार्की, चौधरी और तडागी की चार आलें) क्षेत्र का भूमिकर एकत्र करने का अधिकार देकर सम्मानित किया जाता था। (मदन चन्द्र भट्ट- 2002)।


    लोककथाओं एवं लोक गाथाओं में झालीमाली



    झालीमाली देवी के बारे में यह कथ्य लोकप्रिय है कि वह अपने भक्तों के सपने में आकर आने वाली विघ्न-बाधाओं से उन्हें सचेत कराती हैं। इस रूप में सदेई, रण रौत, भीमा कठैत, राजुला-मालुशाही, महारानी जिया, आदि लोक कथाओं में देवी झालीमाली का उल्लेख प्रमुखता से मिलता है।


    संदर्भ


    पुरवासी - 2015, श्री लक्ष्मी भण्डार (हुक्का क्लब), अल्मोड़ा | लेखक - डॉ० अरुण कुकसाल, जी.के. प्लाजा, श्रीकोट, श्रीनगर (गढ़वाल)

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