KnowledgeBase


    चारु चन्द्र पांडे

    कुमाऊँनी कवि चारु चन्द्र पांडे एक विलक्षण व्यक्तित्व से सम्पन्न हैं। कुमाऊंनी भाषा साहित्य के मर्मज्ञ श्री चारु चन्द्र पाण्डे का जन्म 23 मार्च, 1923 को (संवत्सर प्रतिपदा 5 गते चैत्र विक्रमी संवत् 1980) ग्राम कसून तल्ला, स्यूनरा, जिला अल्मोड़ा में हुआ। इनकी माता का नाम पार्वती देवी तथा पिता का नाम श्री नीलाम्बर पांडे था। चारू चन्द्र पांडे की राशि का नाम देवकीनंदन पाण्डे है और इनके स्वर्गीत पिता जी ने 'चारू चन्द्र' नाम इन्हें दिया। इनका विवाह 25 वर्ष की उम्र में सन् 1948 ई. में हुआ था। इनकी पत्नी का नाम चन्द्रा था।

    चारू चन्द्र पाण्डे कुमाउंनी, हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा के अच्छे जानकार हैं। इन्होंने तीनों भाषाओं में लेखन कार्य किया है। अङवाल, गौर्दा का काव्य दर्शन, छोड़ो गुलामी खिताब, इनकी प्रमुख रचनायें हैं।


    अनूदित रचनायें- ECHOES OF THE HILLS, SAYS GUMANI जिनमें कुमाऊँनी कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है।


    गौद का काव्य दर्शन- चारू चन्द्र पाण्डे ने इसमें गौद की काव्य रचनाओं को एकतित्र करके 'गौर्दा का काव्य दर्शन' नाम द्वारा हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया है।


    छोड़ो गुलामी खिताब- चारू चन्द्र ने इसमें गौर्दा की राष्ट्रीय आंदोलन, स्थानीय प्रतिरोध समाज सुधार, कुली बेगार इत्यादि मस्याओं से सम्बन्धित कवितांए प्रस्तुत की हैं।


    Echoes of the hills- इसमें इन्होंने कुमाउनी कवि गौर्दा की कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद किया है।
    Says Gumani - Says Gumani में कुमाऊँनी के प्रथम कवि गुमानी की कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद किया गया है।


    चारू चन्द्र पाण्डे की कविताओं में भोलापन है जो एक सहज व्यक्ति भी समझ सकता है। इन्होंने कुमाऊं की विभिन्न परिस्थितियों को अपनी कविता के माध्यम से हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया है।


    ‘अडवाल काव्य संकलन में विविध विषयों का वर्णन इन्होंने किया है। जिसमें उनकी कविताओं का मुख्य विषय राष्ट्रीय एकता, सौन्दर्य वर्णन, प्रकृति वर्णन, दार्शनिकता, प्रेम भावना इत्यादि प्रमुख रहे हैं। कविताओं का कोई भी विषय हो सभी में इन्होंने प्रसिद्धि प्राप्त की है। इन्होंने कविता में जहां प्रकृति और प्रेम को अपनी कविता का विषय बनाया है वहीं अनेक कविताएं राष्ट्रीय एकता से संबन्धित भी लिखी हैं।


    चारू चन्द्र पाण्डे ने 'अडवाल' में 'राष्ट्रीय एकता' जन्म भूमि की माटी चनण लगूल, 'जन्म भूमि ओ इजू, 'यो पर्वत ज्यान है प्यारा छन', 'राष्ट्रैकि एकता', गणतंत्र अमर' इत्यादि कविताएं हैं जिसमें इन्होंने लोगों को कविता के माध्यम से कुछ कर दिखाने को कहा है और कहते हैं तुम लोग सोच में क्या डूबे हो ? तुमने वैसे ही बहुत देर कर दी है। समय तुम्हारे लिये नहीं रूकेगा। इसलिये विवेक से काम लो-


    ‘त मन्सुपन् छोड़ि उठौ अबेर भौत करि हाली
    बखत तुमन् सुँ नी रूकौ, है रौछा लम्पसार के?"

    इस कविता के माध्यम से कवि लोगों को समझाते हुए कहते हैं कि अगर तुमने अभी राष्ट्र के ये कुछ नहीं किया तो बहुत देर हो जायेगी और बीता हुआ समय वापस तुम्हारे पास लौटकर नहीं आयेगा।


    "देखौ राकसी काम, धर्म को नाम करी बदनाम,
    जहर फैलूनो,
    कतुवै क्वे समझन, गिन्यूं नी मून, लूट करि खून,
    शरम नी ऊंनी।।''

    लोग-बाग धर्म का नाम बदनाम करते हैं तथा आपस में जहर घोलते हैं। खून खराबा करते हैं, लूट मार करते हैं, पर शर्म नहीं आती।


    जन्म भूमि के प्रति प्रेम


    हमसे वाट्सएप के माध्यम से जुड़े, लिंक पे क्लिक करें: वाट्सएप उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि

    हमारे YouTube Channel को Subscribe करें: Youtube Channel उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि

    Leave A Comment ?