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    बिशनी देवी शाह

    Bishni Devi Shah

    बिशनी देवी शाह

    जन्म12 अक्टूबर, 1902
    जन्म स्थानबागेश्वर
    मृत्यु10 अक्टूबर, 1930

    देश में आजादी के लिए जंग लड़ने वाले आन्दोलनकारियों की सूची बहुत लम्बी है। उत्तराखण्ड से भी काफी आन्दोलनकारी ऐसे हुए जिन्होनें आजादी के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया था। जिनमें पुरूषों के साथ-साथ महिलाओं की भागीदारी भी बढ़-चढ़ कर रही। उन्हीं में से एक नाम है बिशनी देवी शाह, जो कि उत्तराखण्ड की पहली महिला आन्दोलनकारी और स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान जेल जाने वाली पहली महिला के रूप में जानी जाती है।


    बिशनी देवी शाह का जन्म बागेश्वर में 12 अक्टूबर 1902 को हुआ था। उन्होनें कक्षा 4 तक की शिक्षा विद्यालय से प्राप्त की। 13 वर्ष की आयु में वे शादी करके अल्मोड़ा आयी। जब वे 16 वर्ष की थी तब उनके पति का देहान्त हो गया। उसके बाद वे एकाकी जीवन यापन करने लगी। 19 वर्ष की आयु में उन्होने स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय होने का निश्चय किया। पति के देहान्त के बाद भी वे अल्मोड़ा में ही रहने लगी। उनमे धीरे-धीरे राष्ट्रीय भावना का संचार होने लगा। वे अल्मोड़ा नन्दा देवी मंदिर में होने वाली बैठकों में भाग लेने लगी। साथ-साथ में वे स्वदेशी का प्रचार-प्रसार करने लगी।


    25 अक्टूबर 1930 को अल्मोड़ा के नगर पालिका में राष्ट्रीय ध्वज फहराने का निश्चय किया गया। जिसमें पुरूषों के साथ साथ महिलाओं भी शामिल हुई। भारी जुलूस को देखकर पुलिस ने जुलूस को बल पूर्वक रोका और लाठीचार्ज की जिसमें मोहनलाल जोशी, शांतिलाल त्रिवेदी व जुलूस के अन्य लोग बुरी तरह से घायल हो गये। परन्तु जुलूस के सदस्यों को हौसला नहीं टूटा जिसके बाद जुलूस में शामिल महिलाएं आगे आयी जिनमें बिशनी देवी शाह, दुर्गा देवी पंत, तुलसी देवी रावत, भक्तिदेवी त्रिवेदी, रेवती देवी आदि प्रमुख थी। पुलिस के लाठीचार्ज की खबर मिलने पर बद्रीदत्त पाण्डे और देवीदत्त पन्त अपने मित्रों के साथ अल्मोड़ा पहुंचे जिससे महिलाओं का साहस और भी बढ़ा और वे नगर पालिका में झण्डारोहण करने में सफल हुई। दिसम्बर 1930 में बिशनी देवी शाह को गिरफ्तार कर अल्मोड़ा जेल भेज दिया गया, जहां उनको काफी कष्टपूर्ण जीवन व्यतीत करना पड़ा परन्तु उनके हौसले नहीं डगमगाये।


    जेल से बाहर आने के बाद वे स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार प्रसार में जुट गईं। वे खादी का प्रचार प्रसार करने लगी जिसमें वे चर्खा बेचने लगी। उस वक्त एक चरखा 10 रूपये का आता था, उन्हानें चरखे का मूल्य घटवाकर 5 रूपये करवाया और घर-घर जाकर महिलओं को चर्खा दिलवाया तथा महिलाओं को संगठित कर सभी को चर्खा कातना सिखाया। धीरे-धीरे वे अल्मोड़ा से बाहर भी कार्य करने लगी। 2 फरवरी, 1931 को बागेश्वर में महिलाओं ने आजादी के लिए एक जुलूस निकाला जिसके लिए बिशनी देवी ने उनको आर्थिक सहायता प्रदान की जिसमें बागेश्वर में सेरा दुर्ग में आधी नाली जमीन और 50 रूपये दान की राशि थीं। बिशनी देवी शाह स्वतंत्रता आन्दोलनकारियों के लिए धन जुटाने, संदेश लाने व ले जाने आदि कार्य भी करती थी।


    आंदोलन में निरन्तर सक्रिय रहने के कारण उन्हें 7 जुलाई, 1933 को गिरफ्तार कर 9 माह की सजा और 200 रूपये जुर्माने के साथ फतेहगढ़ जेल भेज दिया गया। जुर्माना न भरने के कारण उनकी सजा एक साल के लिए बढ़ा दी गई परन्तु स्वास्थ खराब रहने के कारण जल्द ही उन्हें रिहा कर दिया गया। 1934 में मकर संक्रांति के अबसर पर उन्होने बागेश्वर में धारा 144 लगी रहने के बावजूद स्वदेशी वस्तुओं की प्रर्दशनी लगाई । इसी दौरान हरगोबिन्द पन्त की अध्यक्षता में रानीखेत में कांग्रेस सदस्यों की एक सभा हुई, जिसमें बिशनी देवी शाह को महिला कार्यकारिणी में महिला सदस्य के रूप में निर्वाचित किया गया। 23 जुलाई 1935 को अल्मोड़ा में नये कांग्रेस भवन में उन्होनें झंडा फहराया, जहां विजय लक्ष्मी पंडित भी मौजूद थी। वे बिशनी देवी शाह के कार्यों से काफी प्रभावित थी। उन्होनें बिशनी देवी शाह की स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका की प्रशंसा की।


    बिशनी देवी ने 26 जनवरी 1940 को एक बार फिर नन्दा देवी अल्मोड़ा के प्रांगण में झण्डारोहण किया। 1940 और 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी भागीदारी की। वे 17 अप्रैल 1940 को नन्दा देवी मंदिर अल्मोड़ा के समीप खुलने वाले कताई केन्द्र की संचालिका बनीं । 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होनें सक्रिय भागीदारी दी। 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता के दिन नंदा देवी के प्रांगण से राष्ट्रीय ध्वज को पकड़कर नारे लगाते हुए उन्होने जुलूस का नेतृत्व किया।


    बिशनी देवी शाह पति के देहांत के बाद अकेली ही रही, उनके पीछे उनका ख्याल रखने वाला कोई नहीं था। जीवन के अन्तिम दिनों में वे आर्थिक संकट से भी जूझती रही। स्वतंत्रता आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद भी स्वतंत्रता मिलने के बाद उन्हें वो महत्व नहीं मिला,जो मिलना चाहिये था। 1974 में उनका निधन हो गया।


    10 अक्टूबर 1930 को दैनिक अमृत बाजार पत्रिका ने उनके लिए लिखा था - "समस्त उत्तर प्रदेश में अल्मोड़ा और नैनीताल आगे आये है, विशेषकर अल्मोड़ा। उसमें बिश्नी देवी की भूमिका सर्वप्रथम है। बिश्नी देवी अदम्य उत्साह और साहस से युक्त महिला है। अपने वैधव्य की रिक्तता को उन्होनें स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़कर पूरा कर दिया"


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