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मदन मोहन उपाध्याय | |
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी | |
जन्म | 25 अक्टूबर, 1910 |
जन्म स्थान | द्वाराहाट |
पिता | श्री जीवानंद उपाध्याय |
अन्य नाम | कुमाऊं का टाइगर, मथुरा दत्त |
मृत्यु | 20 सितम्बर, 2012 |
'क्या किसी को कुमाऊं का टाइगर याद है?' अगर आंदोलनकारियों की धरती उत्तराखण्ड में आज यह सवाल किया जाये तो शायद बहुत कम ही बता पायेंगे कि वह द्वाराहाट निवासी मदन मोहन उपाध्याय ही थे जिनको 'कुमाऊं का टाइगर' का टाइटिल दिया गया था। मदन मोहन उपाध्याय कुमाऊं के पहले ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिनके सिर पर अंग्रेजों ने न केवल एक हजार का इनाम घोषित किया था बल्कि उन्हें काला पानी की सजा भी सुनाई थी।
महज 16 साल की अवस्था में पहली बार जेल गए मदन मोहन उपाध्याय का ज्यादातर समय मुम्बई और अल्मोड़ा की जेलों में बीता। ब्रिटिश पुलिस की गिरफ्त से फरार होने पर उन्होंने मुम्बई में भूमिगत होकर 'आजाद हिन्द रेडियोज' का संचालन कर देश वासियों में आजादी का अलख जगाने का काम किया। वे द्वाराहाट से प्रजा सोशलिष्ट पार्टी के पहले विधायक बन लखनऊ विधानसभा में विपक्ष के उपनेता रहे। द्वाराहाट से रानीखेत तक बनी सड़क के निर्माता और रानीखेत में विद्युत आपूर्ति शुरू कराने वाले ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और राजनेता को लोगों ने भुला दिया। उन्हें याद करना तो दूर, उनके नाम पर आज तक कहीं भी कोई मूर्ति तक स्थापित नहीं कराई गई और न ही कोई स्मारक बनाया गया। Madan Mohan Upadhyay - Tiger of Kumaon
प्रारंभिक जीवन
25 अक्टूबर 1910 को द्वाराहाट के बमनपुरी में जीवानंद उपाध्याय के घर जन्मे थे मदन मोहन उपाध्याय। कालीखोली के मिशन स्कूल में अध्यापक जीवानंद की आठ संतानों में सातवें नंबर पर रहे मदन मोहन उपाध्याय का बचपन का नाम मथुरा दत्त उपाध्याय था। बाद में मदन मोहन मालवीय से प्रभावित होकर ही उन्होंने अपना नाम परिवर्तित किया और वे मथुरा दत्त से मदन मोहन उपाध्याय हो गए। उनकी प्राथमिक शिक्षा द्वाराहाट और नैनीताल के जीआईसी में हुई। इसके बाद वे अपने बड़े भाई पं. शिवदत्त उपाध्याय के साथ इलाहाबाद चले गए। शिवदत्त पंडित मोतीलाल नेहरू के निजी सचिव हुआ करते थे। मदन मोहन उपाध्याय भी उन्हीं के साथ इलाहाबाद में स्वतंत्रता सेनानियों के चर्चित केन्द्र स्थल आनंद भवन में रहे थे। तब वे महज 12 साल के थे। चार साल बाद ही मदन मोहन उपाध्याय स्वंतत्रता संग्राम के सेनानियों के संपर्क में आकर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल और मदन मोहन मालवीय का साथ पाकर मदन उपाध्याय में स्वतंत्रता संग्राम के प्रति ऐसा जज्बा उमड़ा कि महज १६ साल की अवस्था में ही उन्हें पहली बार जेल जाना पड़ा। इलाहाबाद की नैनी जेल से जब वे साल भर बाद निकले तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद उन्हें पंडित जवाहर लाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। 1936 में श्री उपाध्याय इलाहाबाद से वकालत की पढ़ाई पूरी कर रानीखेत आ गए। यहां आते ही उन्हें रानीखेत कन्टोमेंट बोर्ड (छावनी परिषद) का उपाध्यक्ष चुन लिया गया। Madan Mohan Upadhyay - Tiger of Kumaon
आजाद हिन्द रेडियोज और कला पानी की सजा
वर्ष 1937 में श्री उपाध्याय को अल्मोड़ा जिले से प्रांतीय कांग्रेस कमेटी में लिया गया और इसके बाद एआईसीसी (आल इंडिया कांग्रेस कमेटी) का सदस्य चुना गया। तब उन्हें सत्याग्रह आंदोलन के सक्रिय सदस्यों की सूची में रखा गया। 1940 में अल्मोड़ा जिले के वे पहले ऐसे व्यक्ति थे जो सत्याग्रह आंदोलन में गिरफ्तार हुए और एक साल तक जेल में रहे। इसी दौरान नैनीताल से गोविंद बल्लभ पंत भी गिरफ्तार हुए। श्री पंत और मदन मोहन उपाध्याय दोनों ही अल्मोड़ा की जेल में एक साथ रहे। जेल से बाहर आकर एक बार फिर देश की आजादी के आंदोलन से जुड़ गए। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्हें अल्मोड़ा के मासी गांव से गिरफ्तार किया गया। लेकिन वे गोटिया भवाली के पास पुलिस की गिरफ्त से फरार हो गए। तब अंग्रेजी हुकूमत ने श्री उपाध्याय के जिंदा या मुर्दा पकड़े जाने पर 1000 का इनाम द्घोषित किया था। फरारी की हालत में ही वे मुम्बई पहुंचे, जहां उनकी मुलाकात जयप्रकाश नारायण, अरुणा आसफ अली, अच्युत पटवर्धन तथा राममनोहर लोहिया से हुई। सभी ने मिलकर 'आजाद हिन्द रेडियोज' की स्थापना की। जहां श्री उपाध्याय ने रेडियो ट्रांसमीटर का महत्त्वपूर्ण काम किया। इस दौरान उन्होंने रेडियो के जरिए देश में स्वतंत्रता की अलख जगाई। 1944 में श्री उपाध्याय को डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट में गैर हाजिरी पर ही काला पानी की सजा सुनाने का फरमान जारी किया। इसके एक साल बाद ही ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें मुम्बई में गिरफ्तार कर लिया और 25 साल की सजा सुनाई गई। इस दौरान उन्हें एक बार फिर अल्मोड़ा जेल में बंद किया गया। Madan Mohan Upadhyay - Tiger of Kumaon
इस दौरान एक ऐसी द्घटना द्घटित हुई जिसने उन्हें भीतर से हिला दिया। वे जेल में थे और उनकी पत्नी बहुत बीमार हो गई। ऐसे में उनकी तीन वर्षीय बेटी को देखने वाला कोई नहीं था और उसने भूख में मिट्टी खा ली। उसमें जहरीला तत्व होने के चलते उसकी मौत हो गई। जेल में उन्हें इस बात की खबर नहीं दी गई। जेल से छूटने पर उन्हें अपनी बेटी की मौत का पता चला।
रसमाज सेवा और राजनीति
वर्ष 1947 में जब देश आजाद हुआ तब कांग्रेस से अलग हुए लोगों ने सोशलिष्ट पार्टी का झंडा बुलंद किया। जिनमें मदन मोहन उपाध्याय भी शामिल हो गए। 1952 में पहली बार हुए विधानसभा के आम चुनावों में सोशलिष्ट पार्टी प्रजा सोशलिष्ट पार्टी में तब्दील होकर रानीखेत उत्तरी से चुनाव में उतरी। विधानसभा में उन्हें विपक्ष का उपनेता चुना गया। क्षेत्र का विधायक रहते हुए उन्होंने द्वाराहाट को रानीखेत से जोड़ने के लिए मोटर मार्ग का निर्माण कराया। इसी दौरान श्री उपाध्याय ने रानीखेत में विद्युतीकरण भी कराया। बताया जाता है कि रानीखेत के नागरिक चिकित्सालय की नीव भी उनके ही प्रयासों के चलते रखी गई थी जिसे वर्तमान में गोविंद सिंह मेहरा चिकित्सालय के नाम से जाना जाता है। एक अगस्त 1978 को मदन मोहन उपाध्याय का रानीखेत में निधन हो गया।
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