उमेश डोभाल | |
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जन्म | 17 फरवरी 1952 |
जन्म स्थान | पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड |
व्यवसाय | पत्रकार, कवी, समाज सेवक |
मृत्यु | 25 मार्च, 1988 |
उमेश डोभाल हिंदी पत्रकारिता का एक बहादुर और इमानदार चेहरा थे। उन्होंने अपनी नैतिकता, व्यावसायिकता और मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया, शराब और ठेकेदार माफिया से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी। उन्होंने बहादुरी से मौत को गले लगा लिया लेकिन माफियाओं के सामने कभी आत्मसमर्पण नहीं किया।
उमेश डोभाल का जन्म 17 फ़रवरी 1952 में पौड़ी गढ़वाल में हुआ। उन्होंने 23 वर्ष की उम्र में बिजनोर टाइम्स जैसे अख़बारों के लिए लिख के अपने करियर की शुरुवात करी। पौड़ी टाइम्स से जुड़े के उन्होंने पत्रकारिता की शुरुवात की और नैनीताल समाचार के लिए भी लिखते रहे। उसके बाद नवभारत टाइम्स और फिर अमर उजाला, मेरठ में शामिल हुए। मृत्यु तक उन्होंने अमर उजाला के साथ कार्य किया।
अस्सी के दशक के मध्य में अल्मोड़ा और नैनीताल में शराब के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा था। कुमाऊं में दूरदराज के गांवों और छोटे शहरों के हजारों महिलाएं और पुरुष इस आंदोलन के हिस्सा थे। इसके परिणामस्वरूप सरकार ने इन क्षेत्रों में शराब पर प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि, आंदोलन के शांत होते ही शराब माफियाओं के दबाव में आकर सरकार को ठेके फिर से खोलने पड़े। कुमाऊँ क्षेत्र के 254 आउटलेट्स के अनुबंधों की नीलामी एक निजी ठेकेदार को कर दी गई है। सरकार के इस फैसले से आहत उमेश डोभाल ने पौड़ी जिले में अवैध शराब के कारोबार को लेकर धारदार लेख लिखना शुरू किया। आंदोलन के जीवंत वर्षों में, स्थानीय मुद्दों पर लगातार लिखने वाले उमेश शराब व्यापार और उसके परिणामों के विषय पर विशेष रूप से लिखते थे। उमेश डोभाल ने न केवल शराब व्यापार की पूरी व्यवस्था के खिलाफ लगातार लिखा, "बंदूक की नोक पर टेंडर कैसे लूटे जाते हैं" पर उनके द्वारा एक विशिष्ट लेख लिखा गया। उनके लेखों ने माफियाओं की प्रतिष्ठा और उनके बढ़ते वित्तीय हितों दोनों को खतरे में डाल दिया। शराब माफियाओं ने 25 मार्च 1988 उनकी बेरहमी से हत्या कर डाली। शुरू में पुलिस द्वारा एफ.आई.आर. दर्ज करने से इंकार कर दिया। पत्रकारों की पहल पर 'उमेश डोभाल खोजो संघर्ष समिति' का गठन किया गया जिसके अंतर्गत विरोध प्रदर्शन किये गए, इसके बाद पुलिस ने 3 मई को यह मामला दर्ज किया। 30 मई को जाँच क्राइम ब्रांच मेरठ को स्थान्तरित कर दी गयी।
जून और जुलाई के महीनों में राजधानी में कुमाऊं, गढ़वाल और दिल्ली के पत्रकारों द्वारा तीव्र विरोध प्रदर्शनों और रैलियों कर इस मामले को मुखर रूप से उठाया गया। ‘'पत्रकार संघर्ष समिति' का गठन किया गया, जिसने उमेश डोभाल की हत्या के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सीबीआई द्वारा जांच किए जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने 9 अगस्त को सीबीआई को जांच शुरू करने का निर्देश दिया। जांच में सीबीआई को आरोपियों के अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त "मौखिक दस्तावेजी और परिस्थितिजन्य साक्ष्य" मिले। अंतिम मामले में कोई भी गवाह आरोपियों के खिलाफ गवाही देने को तैयार नहीं था। 12 अप्रैल 1994 को सीबीआई के विशेष मजिस्ट्रेट स्वतंत्र सिंह ने 95 पेज के फैसले में आरोपियों को अपर्याप्त सबूत के आधार पर बरी कर दिया।
उमेश डोभाल के नाम से उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट की स्थापना की गयी है, जो उनकी स्मृति में हर साल उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में संगोष्ठी का आयोजन करता है और एक युवा पत्रकार को उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट पुरस्कार से सम्मानित करता है। ताकि युवा पत्रकारों को निडरता से और साहसपूर्वक गलत का पर्दाफाश करने के लिए प्रेरित किया जा सके।
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