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हर्ष देव ओली | |
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जन्म | मार्च 04, 1890 |
जन्म स्थान | ग्राम- गोसानी (खेतीखान), चम्पावत |
शिक्षा | रैमजे कालेज, अल्मोड़ा |
व्यवसाय | पत्रकारिता, स्वतंत्रता सेनानी |
उपनाम | मुसोलिनी, कुमाऊँ का बेताज बादशाह, काली कुमाऊँ का शेर |
मृत्यु | जून 05, 1940 |
हर्ष देव ओली (1890-1940): गोसानी गाँव, खेतीखान चम्पावत। कुमाऊँ में राष्ट्रीय विचारों को फैलाने व स्वाधीनता आन्दोलन की पृष्ठभूमि तैयार करने वाले राष्ट्रभक्त और स्वाधीनता संग्राम के अगुवा। अंग्रेज इन्हें मुसोलिनी कहा करते थे। जनता जनार्दन इन्हें कुमाऊँ का बेताज बादशाह और काली कुमाऊँ का शेर (Tiger of Kumaon) पुकारती थीं। अपने समय के ख्याति प्राप्त पत्रकार और सम्पादक। ओली जी की प्रारम्भिक शिक्षा गांव के स्कूल में हुई। दुर्भाग्यवश 11 वर्ष की उम्र में ही इनके पिता का देहांत हो गया। इनके सामने विपत्ति का पहाड़ खड़ा हो गया। कुछ समय पश्चात ये स्वामी विवेकानन्द जी द्वारा स्थापित खेतीखान से मात्र 4 मील दूर मायावती आश्रम चले गए। वहां इन्होंने 'प्रबुद्ध भारत' के प्रकाशन के लिए कार्य किया। बाद में आगे पढ़ने के लिए रैमजे कालेज, अल्मोड़ा में प्रवेश लिया। 1905 में बंगाल विभाजन हो गया और स्वदेशी ने जोर पकड़ लिया। हर्षदेव ओली ने कालेज छोड़ दिया और राष्ट्रीय आन्दोलन में कूद पड़े। पत्रकारिता को इन्होंने अपना कार्यक्षेत्र बनाया। 1914 में आई.टी.डी. प्रेस के प्रबन्ध निदेशक नियुक्त हुए। 1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन के दौरान पं. मोतीलाल नेहरू के सम्पर्क में आए। 5 फरवरी, 1919 को पं. मोतीलाल नेहरू ने अंग्रेजी भाषा के समाचार पत्र 'इण्डिपेण्डेण्ट' का प्रकाशन प्रारम्भ किया। पत्र के सम्पादक सी.एस. रंगायर और उप- सम्पादक हर्षदेव ओली नियुक्त हुए। 27 जुलाई, 1920 को रंगायर के गिरफ्तार हो जाने पर ओली जी ने सम्पादक का कार्यभार सम्भाला। मोतीलाल नेहरू और जवाहर लाल नेहरू की गिरफ्तारी से अखबार विपत्तियों में फंस गया और अन्तत: दिसम्बर, 1921 में बन्द हो गया।
1923 में हर्षदेव पं.मोतीलाल के साथ नाभा स्टेट चले गए। वहां के राजा रिपुदमन सिंह ने इन्हें अपना सलाहकार नियुक्त किया। यहीं पर पहली बार इन्हें पण्डित मोतीलाल नेहरू और जवाहर लाल नेहरू के साथ गिरफ्तार होना पड़ा। राजा रिपुदमन सिंह के मामले को सुलझाने में ओली जी ने विशेष सहयोग दिया। नाभा स्टेट से लौटने के बाद इन्होंने कुमाऊँ में जंगलात आन्दोलन में भाग लिया। इस दौरान गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए। 1923 से 1940 की अवधि में हर्ष देव कुमाऊँ के सभी आन्दोलनों से जुड़े रहे। इसी बीच आप दो बार जिला परिषद के सदस्य चुने गए। 1924 में गठित 'फारेस्ट कमेटी' के उपाध्यक्ष नियुक्त किए गए।
1923 से 1930 तक हर्षदेव जी ने गांव-गांव जाकर स्वदेशी का प्रचार किया। जनता के बीच जाकर अंग्रेजों की साम्राज्यवादी व शोषण की नीति समझाई। गुमदेश की पत्थर खदानों को कर मुक्त कराया। काली कुमाऊँ में नमक आन्दोलन काफी लोकप्रिय हो चुका था। ओली जी की लोकप्रियता का आलम यह था कि जनता इनके एक इशारे पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार रहती थी। 9 अगस्त, 1930 को एक वृहद जनसमूह के साथ ओली जी ने देवीधुरा मेले में प्रवेश किया। मेले में इन्होंने अपने प्रभावशाली भाषण में ब्रितानी सरकार की आलोचना करते हुए जनता को कांग्रेस की नीतियां समझाई। जनता का इनके प्रति रुख देखकर, चाहते हुए भी सरकारी कारिन्दे इन्हें गिरफ्तार नहीं कर सके। अन्तत: 12 अगस्त 1930 को पुलिस इन्हें इनके घर से गिरफ्तार कर ले गई। फिर क्या था, जंगल की आग की तरह यह समाचार काली कुमाऊँ में फैल गया। हथियारों से लैस लगभग तीस हजार के जनसमूह ने इनकी गिरफ्तारी के विरोध में तहसील कार्यालय को घेर लिया। इनके भाषण के बाद ही जनता शान्त हुई। इन्हें छह मास का कठोर कारावास हुआ। बाद में गांधी-इर्विन पैक्ट हो जाने पर मार्च 1931 में रिहा हुए।
1932 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान इन्हें पुनः गिरफ्तार किया गया और छह माह कारावास की सजा तथा जुर्माना हुआ। इसी दौरान इनकी वृद्ध माता का देहान्त हो गया। इन्हें क्रिया कर्म के लिए पैरोल पर छोड़ा गया और पुनः बरेली जेल भेज दिया गया। ओली जी ने समाज में व्याप्त बुराइयों को जड़ से उखाड़ फेंकने का भी बीड़ा उठाया। पिथौरागढ़ जनपद के ग्राम लेलू, चौपखिया, सिंचौड़, नैनी तथा काली कुमाऊँ के ग्राम खिलपति, गुमदेश तथा रौलमेल में नायक जाति के लोग अपनी कन्याओं से वेश्यावृत्ति करवाते थे। ओली जी ने नारायण स्वामी के साथ मिलकर जनजागृति अभियान शुरू किया और नायक प्रथा निवारण कानून 1934 विधेयक कौंसिल से पास करवाया। कुली उतार, कुली बेगार व कुली बर्दायश प्रथा को तोड़ने में इन्होंने बद्रीदत्त पाण्डे जी के साथ काम किया। लोहाघाट में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र खुलवाया। चल्थी पुल के निर्माण में योगदान किया। गवर्नर हेलेट से मिलकर लखनऊ-ल्हासा मार्ग का विचार प्रस्तुत किया। तराई मे बसे थारूओं के लिए बहुत काम किया। ओली जी का तत्कालीन सभी नेताओं से अच्छा सम्पर्क था। वे लीडर, हिन्दुस्तान टाइम्स, आज समाचार पत्रों के भी संवाददाता रहे। स्टेट्समैन के संपादक आर्थर मूर से इनके अच्छे सम्बन्ध थे। 1934 में लाल बहादुर शास्त्री आठ दिन इनके साथ गोशनी गांव में रहे।
हर्ष देव ओली जी का निधन नैनीताल में 5 जून 1940 में हुआ, उनके याद में खेतीखान में सेनानी पार्क बनाया गया है।
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