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    इलाचन्द्र जोशी

    आधुनिक हिंदी साहित्य एवं मनोविज्ञान के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने वालों में इलाचंद्र जोशी प्रमुख हैं। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। विभिन्न लेखक विद्याओं पर गंभीर रचनाएँ उनकी हिंदी साहित्य को अमूल्य देन है। जोशी जी ने यद्यपि सभी विधाओं में लेखनी चलायी लेकिन उन्हें सर्वाधिक ख्याति मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास के क्षेत्र में मिली। पात्रों की मानसिक स्थिति का जो सजीव चित्रण उनकी कहानियों और उपन्यासों में मिलता है, वह अन्यत्र दुलभ है।


    इलाचंद्र जोशी का जन्म 13 दिसम्बर 1902 अर्थात् माघ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को संवत् 1856 में अल्मोड़ा में हुआ था। जोशी जी का परिवार बहुत विद्वान था। इनके पिता चंद्रबल्लभ जोशी अल्मोड़ा में अंग्रेजी के अध्यापक थे और साहित्य दर्शन आदि गंभीर विषयों के साथ सितार एवं चित्रांकन में उनकी गहरी रुचि थी। उन्होंने अपने अध्ययन के लिए अल्मोड़ा में बहुत बड़ा पुस्तकालय खुलवाया था, जिसमें तत्कालीन साहित्य के साथ विभिन्न विषयों की उत्कृष्ट पुस्तकों का संग्रह था। इसमें श्रीवृद्धि की इलाचंद्र जोशी के बड़े भाई डॉ. हेमचंद्र जोशी ने। आपने विदेशी धरती पर जाकर भाषा विज्ञान में शोध कार्य किया और पहले भाषा वैज्ञानिक हुए। डॉ. हेम चंद्र जोशी हिंदी के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वान थे, जिन्हें हिंदी जगत जानता और पहचानता है। वे प्रख्यात भाषाविद् और पत्रकार थे। हिंदी साहित्य जिस प्रकार सगे भाईयों- श्यामविहारी मिश्र और शुकदेव विहारी मिश्र की जोड़ी 'मिश्र बंधु' के नाम से विख्यात है, उसी प्रकार पत्रकारिता और समालोचना के क्षेत्र में हेमचंद्र और इलाचंद्र जोशी की 'जोशी बंधु' नाम से जोड़ी प्रसिद्ध रही है। अन्य दूसरी पत्रिकाओं के अलावा ये दोनों भाई हिंदी की लोकप्रिय पत्रिका धर्मयुगके पहले सम्पादक रहे हैं।


    विलक्षण व्यक्तित्व के धनी इलाचंद्र जोशी बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। जोशी जी की माता लीलावती देवी धार्मिक विचारों की महिला थी। पिता की अध्ययन में रुचि व माता की धार्मिक प्रवृत्ति का जोशी जी पर गहरा प्र भाव पड़ा। बचपन में ही रामायण और महाभारत की कथाओं का इन्होंने अध्ययन कर लिया था, जिससे इनका धार्मिक विश्वास पुष्ट हुआ। हिंदी, बंगला, अंग्रेजी, संस्कृत एवं जर्मन भाषा का ज्ञान अपने पुस्तकालय के माध्यम से बचपन से ही प्राप्त करते रहे। जोशी जी की पढ़ने में बहुत अधिक रुचि थी, किन्तु स्कूल की पुस्तकों में इनका मन नहीं लगता था। बचपन में कुमार संभव, रघुवंशम, अभिज्ञान शाकुंतलम् आदि के साथ इन्होंने कीट्स, शैली, वर्ड्सवर्थ, दोस्तोवस्की, चेखव, बंकिमचंद चटर्जी, रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि अनेक साहित्यकारों की विभिन्न रचनाओं का अध्ययन कर लिया था।


    अल्मोड़ा के प्राकृतिक परिवेश के बीच जब इलाचंद्र जोशी ने होश संभाला उन्हीं के शब्दों में उन्होंने 'अपने भीतर एक लेखक को उभरते महसूस किया।' लेखक बनने की इस आकांक्षा के बीच उन्हें अपने जन्म स्थान कुमाऊँ और कुमाउनी भाषा के क्षेत्रीय अनुभव बहुत सीमित लगे। इसके बावजूद उन्होंने यह भी स्वीकार किया है कि जन्मभूमि पर्वतीय परिवेश के अनिर्वचनीय सौंदर्य ने उन्हें पहाड़ी जीवन के भोलेपन की जो सौगात सौंपी, उसी ने उन्हें लेखक बनाया।


    स्कूली पढ़ाई में मन नहीं लगने के कारण हाईस्कूल करने के बाद वे कलकत्ता चले गये। कलकत्ता में उन्होंने सर्वप्रथम 'कलकत्ता समाचार' में काम किया। इलाचंद्र जोशी अपने समय के उन प्रबुद्ध साहित्यकारों में थे जिन्होंने भारतीय एवं विदेशी साहित्य का व्यापक अध्ययन किया। उन पर रवीन्द्रनाथ टैगोर के व्यक्तित्व का विशेष प्रभाव रहा तथा सदैव लिखते रहने की प्रेरणा उन्हें शरतचन्द्र से मिली। कलकत्ता में जोशी जी का जीवन बड़ा संघर्षमय रहा। उन्होंने जीवन के सैकड़ों उतार-चढ़ाव देखे। बेरोजगारी की समस्या उन्हें जीवन पर्यन्त सालती रही। आजीविका के लिए बड़े भाई के साथ लांड्री खोली। उन्हें जीवन में कदम-कदम पर कठोर अनुभव का सामना करना पड़ा लेकिन वे ईमानदारी और धैर्य से सब कुछ सहते रहे। 1936 में लांड्री को औने-पौने दामों में बेचकर वे प्रयाग आ गये।


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