अनुश्रुति है कि चम्पावत का राजा हरिपचन्द किसी सुन्दरी के स्वप्न दर्शन से इतना चंचल हो गया था कि अपना सारा राज-पाट छोड़कर वह बैरागी होकर हरिद्वार चला गया था। उसका भाई लाट्ट, सेवक स्यूँरा- प्यूँरा, रुदिया, औदलियो, मेलिया, उजियालिया और सैम भी इसके अनुयायी हो गये। तपस्वी, त्यागी और सदाचारी होने के कारण इसका आगमन पवित्र माना जाने लगा। कुमाऊँ में कहावत प्रचलित है- "औना हरू हरपत, जौना हरू खरपत", अर्थात हरू के आने से वैभव आता है और जाने से विपत्ति। कत्यूरधा मे हर तीसरे वर्ष इसकी पूजा होती है।
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